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Hindu Mantavya: July 2015
HinduMantavya
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दिव्य ईश्वरीय प्रेम

सामान्यत: जो लोग देहात्मबुद्धि में आसक्त होते हैं, वे भौतिकतावाद में लीन रहते हैं. उनके लिए यह समझ पाना असम्भव सा है कि परमात्मा व्यक्ति भी हो सकता है. ऐसे भौतिकतावादी इसकी कल्पना तक नहीं कर पाते कि ऐसा भी दिव्य शरीर है जो नित्य तथा सच्चिदानन्दमय है....

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काशी शास्त्रार्थ

जब काशी शास्त्रार्थ में काशी के मूर्धन्य पंडितों के अग्रणी “स्वामी श्री विशुद्धानन्द जी महाराज” ने दुराग्रही स्वामी दयानन्द को शास्त्रार्थ में धूल चटाई :—-> स्वामी दयानंद ने अपना तार्किक उल्लू सीधा करने के लिए एक बार काशी में शास्त्रार्थ कर के सनातन धर्म को समाप्त करके सनातन...

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स्वामी जी की मूर्खता

स्वामी जी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय संमुल्लास मे लिखते है प्रसूता स्त्री अपने स्तन के छिद्र पर औषधि का लेप करे ...जिससे दूध श्रावित ना हो ।। कमाल की बात है स्वामी जी ने इस औसधि के कही भी वर्णन नही किया की कौन सि औसधि...

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आर्य समाजियों से एक प्रश्न ??

आर्य समाजी कहते हैं की वो जन्म आधारित जाती को नहीं मानते हैं ; सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है परन्तु आर्य समाजी अपने नाम के साथ क्या लगते हैं   शर्मा आर्य वर्मा आर्य त्रिपाठी आर्य सिंह आर्य ...गुप्ता आर्य शुक्ल आर्य पाल आर्य मौर्य आर्य...

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दयानंदभाष्य खंडनम् -१

सोमः प्रथमो विविदे, सोमो ददद्गन्धर्वाय ( ऋग्वेद म• १०, सुक्त ८५, म• ४० व ४१) इन दोनों ऋचाओं का दयानंद ने जो अनर्थ किया है उस पर भी ध्यान देना जरूरी है सोमः प्रथमो विविदे गन्धर्वो विविद उत्तरः । तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः ॥४०॥   ...

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दयानंदभाष्य खंडनम् -२

स्वामी जी कितने महान थे.... जहाँ जिस मंत्र में नियोग की गन्ध तक नहीं होती थी पहले तो वहाँ नियोग स्वयं गढ़ते थे फिर उसमें ११, ११ वाला तडका दे मारते थे। इसके बाद ही उसे मुर्ख समाजीयो के सामने परोसते थे आइए स्वामी जी की धूर्तता का...

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