चुतियार्थ प्रकाश,
सत्यानाश प्रकाश,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
सत्यार्थप्रकाशान्तर्गत नवम् समुल्लास की समीक्षा | Navam Samullas Ki Samiksha
॥सत्यार्थप्रकाशान्तर्गत
नवम् समुल्लासस्य खंडनंप्रारभ्यते॥
सत्यार्थ
प्रकाश नवम् समुल्लास पृष्ठ १७५,
❝(प्रश्न) यह जो ऊपर को नीला
और धूंधलापन दीखता है वह आकाश नीला दीखता है वा नहीं?
(उत्तर)
नहीं,
(प्रश्न)
तो वह क्या है?
स्वामी
जी इसका उत्तर यह लिखते हैं कि--
(उत्तर)
अलग-अलग पृथिवी, जल और अग्नि के त्रसरेणु दीखते हैं। उस में जो नीलता दीखती है वह अधिक
जल जो कि वर्षता है सो वही नीला दिखाई पड़ता है❞
समीक्षक—
पता नहीं स्वामी जी अपने आपको क्या समझते हैं दो कौड़ी की बुद्धि नहीं इनमें और चले
हैं वैज्ञानिक बनने, लिखा है कि आकाश का नीला रंग उसमें उपस्थित जल के कारण दिखाई पड़ता
है जो वर्षता है सो वही नीला दिखाई पड़ता है, धन्य हे! भंगेडानंद तेरी बुद्धि, अब कोई
स्वामी भंगेडानंद जी से यह पूछे कि यदि जल के कारण आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है
तो फिर बादलों में तो लबालब पानी भरा होता है फिर वह काले सफेद रंग के क्यों दिखाई
पड़ते हैं?
दूसरा
प्रश्न-- जबकि जल रंगहीन होता है उसका कोई अपना रंग ही नहीं होता तो भला उससे आकाश
आदि का रंग परिवर्तन किस प्रकार सम्भव है?
ऐसी-ऐसी
चुतियापंति से भरी बात करने मात्र से ही दयानंद की बुद्धि का पता चलता है, सुनिये आकाश
का रंग नीला जल के कारण नहीं बल्कि, सूर्य के प्रकाश का पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित
गैसादि अणुओं से टकराने के पश्चात हुए प्रकाश के परावर्तन के कारण दिखाई देता है,
वास्तव
में प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है, जो विद्युत चुम्बकिय तरंगों के रूप में संचरित होती
है
सूर्य
से आने वाली प्रकाश किरणों में सभी रंग पहले से विद्यमान होते हैं परन्तु हमारी आँखें
केवल उन्हीं रंगों को देख पाती है, जिसकी तरंगदैर्ध्य दृश्य सीमा के भीतर होती है,
तकनीकी या वैज्ञानिक संदर्भ में किसी भी तरंगदैर्ध्य के विकिरण को प्रकाश कहते हैं,
प्रकाश का मूल कण फ़ोटान होता है, प्रकाश की प्रमुख विमायें निम्नवत है,
१•
तीव्रता जो प्रकाश की चमक से सम्बन्धित है
२•
आवृत्ति या तरंग्दैर्ध्य जो प्रकाश का रंग निर्धारित करती है।
अब
सुनिये होता यह है जब सूर्य का प्रकाश हमारे वायुमंडल में प्रवेश करता है तो उसमें
उपस्थित धुल गैसादि के अणुओं से टकराकर चारों ओर बिखर जाता है इन बिखरे हुए प्रकाश
किरणों में छोटी तरंगदैर्ध्य वाले बैगनी, आसमानी और नीला रंग ज्यादा बिखरते है, जबकि
इनकी अपेक्षा लम्बी तरंगदैर्ध्य वाली प्रकाश किरणें कम बिखरती है, यही तीनों रंग हमारी
आँखों तक सबसे ज्यादा पहुँचते हैं, इन तीनों रंगों का मिश्रण नीले रंग के सदृश बनता
है, इस कारण आकाश हमें नीला दिखता है, और स्वामी जी इसमें क्या चुतियापंति लिखीं हैं
वह आपके सामने है,
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