श्रीमद्भगवद्गीता
अथ प्रथमोऽध्यायः- अर्जुनविषादयोग
(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह, और शोकयुक्त वचन)
अथ द्वितीयोऽध्यायः- सांख्ययोग
(सांख्ययोग कर्मयोग का विषय ; क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवयश्कता ; स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महिमा)
अथ तृतीयोऽध्यायः- कर्मयोग
(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)
अथ चतुर्थोऽध्यायः- ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
(सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय; योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा; फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन; ज्ञान की महिमा)
चौथा अध्याय श्लोक 01-09
चौथा अध्याय श्लोक 10-18
चौथा अध्याय श्लोक 19-23
चौथा अध्याय श्लोक 24-32
चौथा अध्याय श्लोक 33-42
अथ पञ्चमोऽध्यायः- कर्मसंन्यासयोग
(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय; सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा; ज्ञानयोग का विषय; भक्ति सहित ध्यानयोग का वर्णन)
अथ षष्ठोऽध्यायः- आत्मसंयमयोग
(कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण; विस्तार से ध्यान योग का विषय; मन के निग्रह का विषय)
अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग
(विज्ञान सहित ज्ञान का विषय; संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन; भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा)
अथ अष्टमोऽध्यायः- अक्षरब्रह्मयोग
(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर; भक्ति योग का विषय; शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय )
अथ नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग
(प्रभावसहित ज्ञान का विषय; जगत की उत्पत्ति का विषय; आसुरी प्रकृति वालों की निंदा; सकाम और निष्काम उपासना का फल; निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )