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Hindu Mantavya: September 2015
HinduMantavya
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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चौदह श्लोक 19-27

गुणत्रयविभागयोग » भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति । गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति ॥१९॥ भावार्थ :  जिस समय दृष्टा तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य किसी को कर्ता नहीं देखता और तीनों गुणों से अत्यन्त परे सच्चिदानन्दघनस्वरूप मुझ परमात्मा को तत्त्व...

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चौदह श्लोक 05-18

गुणत्रयविभागयोग » सत्‌, रज, तम- तीनों गुणों का विषय सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः । निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्‌ ॥५॥ भावार्थ :  हे अर्जुन! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण -ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं॥5॥ ...

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चौदह श्लोक 01-04

गुणत्रयविभागयोग » ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्ति श्रीभगवानुवाच परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम्‌ । यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥१॥ भावार्थ :  श्री भगवान बोले- ज्ञानों में भी अतिउत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसार से...

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