Morning Mantras,
sri Suryadev
सूर्याष्टकम् - आदिदेव नमस्तुभ्यं (Suryashtakam: Adi Deva Namastubhyam)
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥१॥
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥१॥
Aadi-Deva Namastubhyam Prasiida Mama Bhaaskara ।
Divaakara Namastubhyam Prabhaakara Namostu Te ॥1॥
Divaakara Namastubhyam Prabhaakara Namostu Te ॥1॥
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥२॥
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥२॥
Sapta-Ashva-Ratham-Aaruuddham Pracannddam Kashyapa-[A]atmajam ।
Shveta-Padma-Dharam Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥2॥
Shveta-Padma-Dharam Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥2॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥३॥
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥३॥
Lohitam Ratham-Aaruuddham Sarva-Loka-Pitaamaham ।
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥3॥
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥3॥
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥४॥
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥४॥
Trai-Gunnyam Ca Mahaa-Shuuram Brahma-Vissnnu-Maheshvaram ।
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥4॥
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥4॥
बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥५॥
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥५॥
Brmhitam Tejah-Pun.jam Ca Vaayum-Aakaashame[a-I]va Ca ।
Prabhum Ca Sarva-Lokaanaam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥5॥
Prabhum Ca Sarva-Lokaanaam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥5॥
बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥६॥
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥६॥
Bandhuka-Pusspa-Sangkaasham Haara-Kunnddala-Bhuussitam ।
Eka-Cakra-Dharam Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥6॥
Eka-Cakra-Dharam Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥6॥
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजः प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥७॥
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥७॥
Tam Suuryam Jagat-Kartaaram Mahaa-Tejah Pradiipanam ।
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥7॥
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥7॥
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥८॥
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥८॥
Tam Suuryam Jagataam Naatham Jnyaana-Vijnyaana-Mokssadam ।
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥8॥
Mahaa-Paapa-Haram Devam Tam Suuryam Prannamaamy[i]-Aham ॥8॥
॥इति श्रीसूर्याष्टकम्॥
9 comments
|| वज्रसूची ||
ReplyDeleteमहाकवि, तत्ववेत्ता, महाबुद्धिमान अश्वघोष की वज्रसूची: ब्राह्मण किसे कहते हैं?
जगतगुरु मंजुघोष के वांग्मयरूपी शरीर को वंदन करने के बाद उनका शिष्य, मै, अश्वघोष शास्त्राधार-पूर्वक वज्र-सूचि नामक ग्रन्थ को आरम्भ करता हूँ ||१||
वेद प्रमाण है, स्मृतियाँ प्रमाण है, यमुचित धर्म युक्त श्रुति प्रमाण है | वह जो प्रमाण को प्रमाण के रूप मे नही मानेगा तो उसके बात को प्रमाण के रूप मे कोण ग्रहण करेगा ||२||
(क्) आपके (इन ग्रंथो) के कथनानुसार इस संसार मे ब्राह्मण ही श्रेष्ठ है | हम कुछ प्रश्नों का निराकरण चाहते है | ब्राह्मण कोण है? क्या आत्मा ब्राह्मण है? या शरीर ब्राह्मण है? क्या कोई मनुष्य जन्म से या ज्ञान से ब्राह्मण होता है? क्या कोई आचार से या ज्ञान से ब्राह्मण होता है? क्या कोई आचार से ज्ञान से ब्राह्मण होता है या या वेदों मे पारंगत होने से?
(ख) वेदों के प्रमाणानुसार आत्मा ब्राह्मण नही है | क्योंकी वेदों मे ऐसा कहा गया है |
(ग) "ओ सूर्य: एक पशु था | सोम एक पशु था | इन्द्र एक पशु था |" पशु देवता बने | (पुनर्जन्म के द्वारा) एक ही व्यक्ति प्रारंभ मे पशु और अंत मे देवता बनते है | जहाँ तक स्वान भक्षी (श्वपाक) भी (ब्राह्मण) देव बन गया था|
(घ) इस प्रकार वेदों के अनुरार, हम समझते है, जिव ब्राह्मण नही है | यही बात महाभारत भी कहता है | महाराभारत मे एक जगह स्पष्ट किया है- एक समय कालिंज पहाड़ी के सात शिकारी, दस हरिन, मानस सरोवर की एक बत्तख और शरद द्वीप का एक चक्रवाक पक्षी, यह सब् कुरुक्षेत्र मे ब्राह्मण कुल मे जन्म पाकर वेद पारंगत हो गए ||३||
(ड) मानव (मनु) धर्म के आधार पर भी यह स्थापित किया जा सकता है- चारों वेद और उनके अपने सांगोपांग मे प्रवीण ब्राह्मण भी यदि शुद्र से दक्षिणा या कोई दूसरा दान ले तो वह गदा हो जाता है | फिर उसे लगातार बारह बार गधे का, सात बार सूअर का और बाद मे सत्तर बार कुत्ते का जन्म लेना पड़ता है ||५-६||
(च) इसलिए, श्रुति स्मृति के अनुसार (ये) जिव ब्राह्मण नही है |
ReplyDelete(छ) जन्म से भी एक मनुष्य ब्राह्मण नही होता | क्यों? स्मृति ऐसा कहती | स्मृति मे ऐसा कहा गया है- अचल मुनि का जन्म हथिनी के पेट से, केश-पिंगल का उल्लू के पेट से, आगस्त्य अगस्त पुष्प से, कौशिक का घास से, कपिला से कपिल, गुल्म से गौतम, द्रोणाचार्य का घड़े से, तैत्तिरीय वृषि का पक्षी के पेट से, रेणु का राम, वृषि श्रुंग हरिण से, व्यास धिव्री के पेट से, वशिष्ठ का उर्वशी वेश्या के पेट से,जन्म हुआ है | इनकी माताए ब्राह्मणिया नही थी तो भी लोकाचार मे इन्हें ब्राह्मण ही माना गया ||७-१०||
(ज) अत: स्मृति प्रामाण्य से, हम मानते है, कोई एक मनुष्य जन्म से, ब्राह्मण नही होता |
(झ) अब यदि आप ऐसा माने की माता एक अब्राह्मनी हो सकती है लेकिन चूँकि पिता ब्राह्मण है अत: पुत्र ब्राह्मण होता है | यदि यह ऐसा ही है, तो नौकरानियों के पेट मे उत्पन्न ब्रह्नों के बच्चे भी ब्राह्मण होते है लेकिन यह आप के लिए मान्य नही है.
(ञ) फिर, यदि एक ब्राह्मण पुत्र ब्राह्मण होता है तो ब्राहमण ऐसा कोई रखा नही है |
क्योंकि आज के युग के ब्राह्मण, ब्राह्मण पिताओं से उत्पन्न है, यह बात संदेहास्पद है | अति प्राचीन समय से , ब्राह्मण सृष्टि के प्रथम पुरुष है, ऐसा माना जाता है | ब्राह्मनें की स्त्रियों का शास्त्र विरुद्ध संबद्ध शूद्रों से (सब जातियों के पुरुषों से भी) था और आज भी है |
इस प्रकार, एक मनुष्य जन्म से ब्राह्मण ही होता है | यह बात मनुस्मृति से भी सिद्ध है, जहाँ की यह कहा गया है- जो ब्राह्मण मांस, सोम और नामक का व्यापर करता है वह तत्काल ब्राह्मण से गिर जाता है | दूध बेचनेवाला तीन दिन के अंदर शुद्र हो जाता है | ब्राह्मण (जो अपनी देवी शक्ति से) आकाश मे उड़ सकते है यदि वे मांस भक्षण करते है तो वे जमीं पर गिर पड़ते हैं अत: विप्रों की ऐसी गिरावट को देखकर मांस भक्षण त्याग देना चाहिए ||११-१२||
(ट) इस प्रकार मनु धर्म के प्रमाणनुसार कोई जन्म से ब्राहमण नही होता है यदि कोई जन्म से ब्राह्मण होता है तो वह मान्य नही है की कर्म से शुद्रत्व का प्राप्त होता है | क्या कभी किसी दोष वश कोई घोडा, सूअर भी हुआ है | अत: कोई मनुष्य जन्म से ब्राह्मण नही होता है |
ReplyDelete(ठ) शरीर भी क्यों ब्राह्मण नही है ? सो कैसे ? यदि शरीर ब्राह्मण है तो जो (दह संस्कार मे) अग्नि (देव) पर रख कर अग्नि लगाते है | वे ब्रह्महत्या रूपी पातक के अधिकारी बनते है और मृत्यु दंड के पात्र ठहरते है | अत: इसका तुक कैसे बैठाए ?
फिर यदि शरिर ब्राह्मण है तो क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र जो की ब्राह्मण की शरीर से उत्पन्न है, (या जो ब्राह्मण द्वारा क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र स्त्रियों से उत्पन्न है) भी ब्राह्मण होते है |लेकिन ऐसा देखा नही जाता है |
फिर (यदि शरीर ब्राह्मण है तो) यजन-याजन, अध्ययन-अध्यापन, दान-प्रतिग्रह, ये सब् कृत्य ब्राह्मण के शरीर से ही होते है, उनको जो लोग मानते है, उनसे पूछते है तो क्या ब्राह्मण के शरीर नष्ट हो जाने से इन सब कृत्यों के गुण धर्म भी नष्ट हो जाते है?
इससे या सिद्ध है (ब्राह्मण का ) शरीर ब्राह्मण नही है |
(ड) ज्ञानवान (मनुष्य) भी ब्राह्मण नही है | क्योंकि, ज्ञान की परिसमाप्ति नही है | इस हालत मे घनवान अनेक शूद्रों को भी ब्राह्मण मानता होगा |कुछ जगहों मे ऐसा भी देखा गया है की शुद्र भी साब शात्रों मे, विद्याओं के सब शाखा-प्रशाखाओं मे, पारंगत हुए है जैसे की बे, वय्याकरण, मीमांसा, सांख्य, वैशेषिक, ज्योतिष (मस्करी पुत्र, गोसाल) आजीव के तत्वज्ञान प्रभूति मे पारंगत पंडिताग्रणी शुद्रो मे भी हुए है | लेकिन उनमे से कितने ब्राह्मण हुए?
इससे हम मानते है की (कोई) ब्राह्मण ज्ञानवान होने से भी ब्राह्मण नही होता|
ReplyDelete(ढ) आचार से भी कोई (मनुष्य) ब्राह्मण नही होता |क्योकि, उस अवस्था मे जो शुद्र उनका आचरण करते है, (वे) ब्राह्मण बन गए होते ! और यह भी देखा जाता है की शुद्र जैसे ही नट, भाट, कबर्थ भांड और दूसरे, तरह तरह आचारों का बहुत उज्वलता से पालन करते है लेकिन वे ब्राह्मण नही होते |
( इससे भी ये सिद्ध है ) आचारशील एक भी मनुष्य ( ब्राह्मण ) नही होता |
(ण) जीवन वृत्ति से भी एक मनुष्य ब्राह्मण क्यों नही होता है ? क्योंकि यह देखा गया है की क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र भी यजन-याजन, पठन-पाठन, दान-प्रतिग्रह (जो की ब्राह्मणों की जीवन-वृत्तियाँ है | ) आदि नाना कर्मो के करने से भी किसी शुद्र को आपने ब्राह्मण नही माना |
( इससे सिद्ध है की ) वृत्ति से भी ( आप ) किसी को ब्राह्मण नही मानते है |
(त) वेदों के ज्ञाता होने से भी कोई ब्राह्मण नही होता है | ऐसा क्यों? रावण नाम का राक्षस था जिसने चारो वेद वृग, यजु, साम और अथर्व वेद का अध्ययन किया था, राक्षसों के प्रत्येक घरों मे वेद अध्ययन होता था | लेकिन वे ब्राह्मण नही होते थे |
इससे हम यह समझते है की वेदों मे पारंगत होने से भी (आप किसी को) ब्राह्मण नही मान सकते | |
(थ) ब्राह्मणत्व को तब कैसे प्राप्त किया जाता है; यह कहा गया है- यह न शात्र ज्ञान से, न जन्म से, न जाती से, न वेदों मे पारंगत होने से या वृत्ति (या ब्राह्मणों की जीविका मार्ग) ही से ब्राह्मणत्व को प्राप्त करता है ||१३||
ReplyDelete(द) सब् प्रकार के पापों से विरत होना ही ब्राह्मणत्व है, जो की स्वछंद, कुंद पुष्प और चन्द्रमा की भांति है |
(ध) यह कहा गया है :- "ब्राह्मणत्व आचरण और शील के पालन से भी, ताप से, व्रत से, दान से, आभ्यंतर और वाह्य पर अधिकार होने से प्राप्त किया जाता है |"
वेदों मे भी ऐसा कहा गया है :-
वह जो ममता रहित है, वह जो निरंकारी है, जो निसंग है, जो की असंग्रही है, जो की राग-द्वेष से रहित है, विलासिता और घृणा से मुक्त है, उन्हें देवों ने ब्राह्मण माना है ||१४||
साब शास्त्रों मे ऐसा माना है :-
"सत्य ब्राह्मणत्व है, तप ब्राह्मणत्व है, इन्द्रियों पर अधिकार ब्राह्मणत्व है, प्राणी मात्र के प्रति दया ब्राह्मणत्व है, क्या यह एक ब्राह्मण के लक्षण है ?" ||१५||
असत्यवादी तप रहित होना, इन्द्रियों पर अशिकर न होना, प्राणी मात्र के प्रति दया रहित होना, एक चंडाल के लक्षण है ||१६||
जो मनुष्य मैथुन धर्म के सेवी नही है वे देवत्व को प्राप्त कर या मनुष्य या पशु होकर भी विप्र या ब्राह्मण होते है ||१७||
शुक्राचार्य ने भी कहा है "- "जन्म नही, सुन्दर कल्याणकारी शील ही गुणों की खान है, एक चंडाल मे, जो ये बाते है, ती देवों द्वारा उसे ब्राह्मण शरीरधारी माना गया है” ||१८||
(न) "इसलिए ऐसा कोई जन्म नही, न आत्मा, न शरीर, न ज्ञान, न परम्परागत आधार, न वृत्ति, न वे है, जो की किसी को ब्राह्मण बनाता हो |"
ReplyDelete(प) "आपने ऐसा भी कहा है- इस संसार मे शुद्र मुक्ति के अधिकारी नही है | उनका एकमात्र कर्तव्य है की ब्राह्मणों की सेवा | जिस प्रकार सब अंत मे शुद्र का नाम आया है उसी प्रकार वह सबसे निचे है"|
(फ) यदि ऐसा ही है, तब इंद्र (देवातिदेव) भी इस उक्ति के अनुसार नीचे होते है. ‘श्वुयुमघोनामतद्धिते’ इसमें श्वान अर्थात कुत्ता और (क्योंकि) युवक इंद्र से पहले आया है तो क्या इसी से उसे मघवा (इंद्र) से श्रेष्ठ समझना चाहिये? लेकिन ऐसा नहीं देखा जाता है, क्या किसी को केवल इसीलिए दोष दिया जायगा की उसका नाम अन्त मे आया? भाषा के संयुक्त शब्दों मे मिश्रित शब्द आते है, क्योंकि ‘दंतोष्ठ’ समास मे दांत ओंठों से श्रेष्ठ है | “उमा-महेश” कहने से क्या उमा-महेश से श्रेष्ठ मानी जायगी? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र कहने से ही क्या शुद्र को चाहे वह कितना ही सज्जन क्यों न हो, नीच एवं दुर्जन ठहराना पहले दर्जे का बचपन नहीं है? यह तो केवल संयुक्त शब्द है |
“इसलिए आपका यह जो दावा है की ब्राह्मणों की सेवा करना उनका कर्तव्य है,” सही ठहरता |
"वह ब्राह्मण जो शुद्रा के साथ सोता है, उसे चूमता है, पुत्रोत्पन्न करता है, वह पतित होता है, इससे उसे मुक्ति नही है" ||१९||
“जो शुद्रा स्त्री के हथन बनाया भोजन एक मास तक खाता है, एक जीते जि शुद्र हो जाता है और मरने के अनंतर कुत्ता हो जाता है” ||२०||
“एक ब्राह्मण जो की शुद्रानियो से घिरा रहता है, वह जिसकी शुद्रा (पत्नी) रखेल है वह पितरों और देवो के उद्येश्य से किये जाने वाले संस्कारो के करने करने का अपने अधिकारों को खोता है ||२१||
अत: इस प्रमाण के अनुसार ब्राह्मण शब्द का प्रयोग निर्धारित नही है |
एक और भी है, “एक शुद्र भी ब्राह्मण होता है |” इसका क्या कारण है ? क्योंकि मनुस्मृति मे कहा है – अरणी कुक्शोत्पन्न वह महान वृषि ‘कठ’ अपने तप से ब्राह्मण बना इसलिए जन्म ब्राह्मणत्व का कारण नही | अपने तप से केवट स्त्री के पेट से उत्पन्न व्यास एक महान वृषि हुआ | इससे भी ब्राह्मणत्व का कारण जन्म नही है | उर्वसी पुत्र वसिष्ठ अपने तप से ब्राह्मण बना | इससे भी ब्राह्मणत्व के लिए जन्म कारण नही बना | हरिणी पुत्र वृशिश्रुंगी अपने तप से महान बना | जाती बाधक नही हुई | चंडाल स्त्री मे उत्पन्न विश्वमित्र एक महान वृषि बना | जन्म इसमें कारण नही बना |तान्दुलिपुत्र नारद अपने तप से महान वृषि बना |इससे भी सिद्ध है की जन्म ब्राह्मणत्व का कारण नही हुआ करता है ||२२-२७||
तप से तापस. ब्रह्मचर्य ब्राह्मण बनते है | लोक मे ब्रह्मनिया पुत्र होने से कोई ब्राह्मण नही होते है |शील सदाचार संपन्न मनुष्य ही यति, एवं स्वयं दमन किया हुआ मनुष्य ही जितेन्द्रिय है ||२८||
ReplyDelete"उन ('कठ' आदि) महापुरुषों की माताएँ ब्राह्मानी नही है | लेकिन लोक के लिए ब्राह्मणत्व सदाचार और पवित्रता मे परिव्याप्त है | अत: ब्राह्मणत्व के लिए जन्म कारण नही है" ||२९||
"जन्म या वंश आवश्यक नही हुआ करता, परन्तु नैतिकता ही देखि जाती है | यदि एक मनुष्य नैतिकता मे गिरा हुआ है तो जाती या वंध उसका क्या करेगा? शील सदाचार संपन्न परन्तु निम्न कुलोंत्पन्न बहुत से मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त किये है" ||३०||
"कठ, व्यास, वसिष्ठ, वृषिश्रुंग, विश्वामित्र आदि ये सब ब्राह्मण वृषि कोण थे ? ये सब नीच कुलोत्ल्पन्न थे | परन्तु लोक ब्राह्मण ही विख्यात हुए | अत: इन प्रमाणों के आधार पर ब्राह्मण शब्द का प्रयोग निर्धारित नही है | शुद्र कुलोत्पन्न होने पर भी एक मनुष्य ब्राह्मणत्व को प्राप्त करता है" ||३१||
हमें बैल-भोडा आदि मे जैसे वैषम्य दिख पड़ता है, वैसे इन ब्राह्मण-क्षत्रिय आदि मे लवलेश भी नही दिखता है | इसलिए इन चारों को एक ही जाती मानना चाहिए |
(य) आप दूसरी दृष्टी भी रखते है | जैसे की:-
"ब्राह्मण ब्रह्म के मुख से, क्षत्रिय भुजा से, वैश्य जांघ से अपुर शुद्र ल्पैर से" |
(र) हम देखते है की इससे कई प्रकार के ब्राह्मणों के अस्तित्व का पता लगता है | अत: यह पता नही लगता है की मुख से उत्पन्न ब्राह्मण कही है | अत: यह पता नही लगता है की मुख से उत्पन्न ब्राह्मण कहाँ है | पुन्यनुष्ठान न के कार्य इनके लिए भी तो किया जाता है जैसे ब्राह्मणोचित 'मुंज' से आहुति दीनन और सूत्र (यज्ञोपवित) देना आदि वे भी तो ब्राह्मण ही कहलाते है |
(ल) फिर, एक ही व्यक्ति से उत्पन्न लोगों (जो की ब्राह्मण ) मे चार जातियाँ कैसे संभव है ? देवदत्त नाम का एक मनुष्य है जिससे एक स्त्री से चार पुत्र उत्पन्न हुए | उनको आप ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और बाकि शुद्र आदि नाम कैसे कर सकते है ? ऐसे चार जातियों मे विभक्त नही हुआ करते | क्योंकी वे एक है पिता से उत्पन्न है | तब ब्राह्मण आदि मे चार जातियाँ कैसी ?
(व) इस संसार मे गाय, हाथी, घोड़े, हिरन, सिंह आदि के हाथ-पैर आदि शारीरिक अवयवों से उनकी जाती की भिन्नता का पता चल जाता है | जैसे की - एक गाय की बनावट ऐसी है, एक हाथी की इस प्रकार है, एक घोड़े की इस प्रकार, एक हरिन की इस प्रकार है | यह सिंह की है और यह अमुक की, आदि लेकिन एक ब्राह्मण आदि के विषय मे ऐसी बात नही है | एक ब्राह्मण के शारीरिक बनावट से उसकी जाती निर्धारित करना संभव नही है | यही बात एक क्षत्रिय, एक वैश्य और एक शुद्र के विषय मे भी है |
अत: शारीरिक बनावट मे, हाथ-पैर, नाक-कान आदि मे पृथकता सूचक चिन्हों के अभाव मे मनुष्य मे हम केवल एक ही जाती को पाते है, चार नही |
(श) और फिर, जैसे हंस, पारावत, कोकिल, शिखंडी आदि (प्राणियों मे ) रूप-वर्ण, आदि मे अंतर दिखलाई भी देता है, उस प्रकार का भिन्नता-सूचक चिन्ह ब्राह्मनादी मे नही |
ReplyDelete(ष) जैसे बड, बकुल, पलाश, अशोक, तमाल, नागकेशर, सिरस और चम्पक आदि वृक्ष लतादिकों मे पत्ते, फल, फुल, चिल्का, बिज, रस और गंध आदि सब कुछ भिन्न- भिन्न प्रकार के होते है इसलिए उनको भिन्न-भिन्न जातियों के मानमा तो ठीक है पर इसी अर्थ मे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र को जाती कैसे खा जा सकता है ?ये चारों वर्गों के लोग भीतर-बहार से एक ही जीत के है | हड्डी, रक्त, मांस, अवयव, इन्द्रियाँ, टस, सत्व प्रभूति सब लक्षणों की दृष्टी से ये अभिन्न है |
(स) हास्य, रोदन, हव-भाव, रोग-भोग, जीवन-मरण की रितिकृति, भीती-कारण और कर्म प्रवृत्ति सब इनमे एक से है |
(ह) गुलर और कत्ल के पेड़ों मे ठनी, तना, जोड़, जड़ आदि मे सभी स्थानों पर फल लगते है | पर रंग. आकृति, स्पर्श आदि की दृष्टि से क्या टहनी पर लगनेवाले, और क्या निचे लगनेवाले, फल साब समान होते है | इस अर्थ मे बे सब फल समान होते है | इनको अलग-अलग जातियों के नही माना जाता | टहनी, दंड, और जड़ मे भी गुलर लगते है | टहनी के सिर पर जो गुलर लगा है क्या उसे ब्राहमण, और जो दंड आदि मे लगा है वे क्षत्रिय या वैश्य , जो निचे लगा है उसे शुद्र गुलर कहना चाहिए ? उसके फल भी समान है | उस प्रकार मनुष्य भी साब समान है | एक पिता के पुत्रों की भांति उनमे भेद नही है |
(ळ) आपके कथन मे एक और गलती है | यदि ब्राह्मण की उत्पत्ति मुख से हुयी है तो ब्राह्मणी की उत्पत्ति कहा से हुयी ? निच्चय ही मुख से | अह ! यदि यही है तो वह ब्राह्मण की बहन हुई | इस प्रकार, तो क्या आपके लिए विधि-अविधि सम्बन्ध का मान है ! लेकिन इस प्रकार सम्बन्ध लोकाचार के विरुद्ध है | अत: ब्राह्मणत्व अनिश्चित है !
कर्म भेद से जातिभेद की उत्पत्ति हुयी है | धर्मराज (युधिस्ठिर ) के द्वारा वैशम्पायन से प्रश्न किये जाने पर भी इस बात का स्पस्टीकरण हुआ था की चार वर्ण की उत्पति कर्म अर्थात श्रम से हुयी है |
"पांडू के विख्यात पुत्र युधिस्ठिर ने वैशम्पायन से हाथ जोड़कर प्रश्न किया" ||३२||
"ब्राह्मण किसे कहते है? किन लक्षणों से कोई ब्राह्मण होता है, यह मै जानना चाहता हूँ | आप कृपा करके समझा दीजिए" ||३३||
वैशम्पायन ने कहा :- वह जो गुणवान है जसी की क्षमा-शान्ति आदि और जिसने शस्त्र का त्याग कर दिया और मांस-भक्षण त्याग दिया है, जो किसी की हत्या नही करता है, ये है एक ब्राह्मण के लक्षण ||३४|| चाहे वह घर मे हो या सड़क पर पड़ी हो वह जो दूसरे की चीज बिना दिए नही लेता है, यह एक ब्राह्मण के द्वितीय लक्षण है ||३५||
वह जो सब प्रकार की स्वार्थ-परता से मुक्त है, दयावान है, और सब प्रकार के सांसारिक संबंधो से मुक्त हो, सर्वत्र विचरण करता है, वह ब्राह्मणत्व के तीसरे लक्षणे से युक्त है ||३७||
वह जो देवत्व को मनुष्यत्व या पशु होकर रति-क्रीडा से रहित है, ब्राह्मणत्व का यह चौथा लक्षण है ||३७||
सत्य की पवित्रता है, करुणा ही पवित्रता है, इन्द्रिय-संयम ही पवित्रता है, प्राणी मात्र के प्रति दया ही पवित्रता है, ब्राह्मणत्व के यह पांचवे लक्षण है ||३८||
ReplyDeleteहे युधिष्ठिर ! जिनमे यह पांच बातें है, उन्हें मै ब्राह्मण कहता हूँ, और दूसरे सब शुद्र है ||३९||
जन्म से, वंश से या वृत्विकता से कोई ब्राहमण नही होता | यदि कोई चंडाल भी अच्छे गुणवाला है तो वह ब्राह्मण है ||४०||
"हे युधिष्ठिर ! पुराने समय मे, संसार मे एक ही वर्ण था | चार वर्णों की उत्पत्ति कर्मो की भिन्नता के अनुसार हुयी है" ||४१||
"सभी अस्थायी है और एक ही स्थान (स्त्री-गर्भ) से उत्पन्न है | सभी मे अवयव और मल-मूत्र आदि गंदगियां है | अत: मनुष्य अपने अच्छे आचरण से ही ब्राह्मण होते है ||४२||
"यदि कोई शुद्र भी अच्छे आचरण वाला और गुणवान है तो वह ब्राह्मण होता है और एक ब्राह्मण भी गुण-हीन है तो वह शुद्र से भी निम्न है" ||४३||
वैशम्पायन ने और भी कहा है -
"हे युधिष्ठिर ! यदि पंचेन्द्रिय रूपु भयानक समुद्र को शूद्रों के द्वारा भी पर किया है तो उसे भी असीम दान देना चाहिए" ||४४||
"हे राजन ! जाती नही देखी जाती है | अच्छे गुण ही उत्तम है |जो धर्माचरण करता है और दूसरे की भलाई के लिए जीवन धारण करता है, जो रात-दिन शान्तिशील है, उसे देवताओं द्वारा ब्राह्मण स्वीकार किया गया है ||४५||
"हे कुंती पुत्र ! जिसे गृहवास त्याग दिया है, जो वितृष्ण है, जो मोक्ष की प्राप्ति मे लगे हुए है वेही ब्राह्मण कहलाते है ||४६||
"अहिंसा, नि:स्वार्थता, शात्र के विरुद्ध आचरण न कारण, राग-द्वेष से रहित होना, ये ब्राह्मण के लक्षण है ||४७||
"क्षमा. दया,दम, दान, सत्य, शील संपन्न और शास्त्र विरुध्द आचरण न कारण, ज्ञान युक्त होना, ये ब्राह्मण के लक्षण है ||४८||
"अगर एक मनुष्य गायत्री मन्त्र ही धारण कर भली प्रकार संयमित हो विचरता है तो ब्राह्मण है | वह जो चारों वेदों के ज्ञाता है पर असंयमी है और जो सर्वभक्षी और सर्वग्राही है, ब्राह्मण नही है ||४९||
"एक रात्रि भी अपने इन्द्रिय-संयम द्वारा वह जो ब्रह्मचारियों द्वारा गम्य स्थिती को यदि कोई प्राप्त करता है, उस स्तिति को यदि कोई हजारों पशुओं के हनन द्वारा यज्ञं करके प्राप्त नही कर सकता है ||५०||
"सब वेद-वेदांगों मे पारंगत हो सभी तीर्थो की यात्रा करके आने से भी श्रेष्ठतर वह है जो अपने कर्तव्य को करता है जो तृष्णा-रहित है, व्ही ब्राह्मण है ||५१||
"वह जो अपने मन, वाणी और काम से किसी भी प्राणी की हिंसा नही करता है वह ब्राह्मणत्व को प्राप्त करता है ||५२||
"हतबुद्धि ब्राह्मणों की मिथ्या धारणा को हटाने के लिए हमने यहाँ जो कुछ कहा है | गुनग्राही मनुष्यों को यदि वह युक्त व सही जंचे तो ग्रहण करें अन्यथा त्याग दे ||५३||
सिद्ध आचार्य अश्वघोष ने इसकी रचना की है !