सामान्यत: जो लोग
देहात्मबुद्धि में आसक्त होते हैं,
वे भौतिकतावाद में लीन
रहते हैं.
उनके लिए यह समझ पाना
असम्भव सा है कि परमात्मा व्यक्ति
भी हो सकता है. ऐसे भौतिकतावादी इसकी कल्पना तक नहीं कर पाते कि ऐसा भी
दिव्य शरीर है जो नित्य तथा सच्चिदानन्दमय है. भौतिकतावादी धारणा के अनुसार
शरीर नाशवान, अज्ञानमय तथा
अत्यन्त दुखमय होता है. अत: जब लोगों को भगवान के
साकार रूप के विषय में बताया जाता है तो उनके मन में शरीर की यही धारणा
बनी रहती है. ऐसे भौतिकतावादी पुरुषों के लिए विराट भौतिक जगत का
स्वरूप ही परम तत्व है. फलस्वरूप वे परमेश्वर को निराकार मानते हैं और
भौतिकता में इतने तल्लीन रहते हैं कि भौतिक पदार्थ से मुक्ति के बाद भी अपना
स्वरूप बनाये रखने के विचार से डरते हैं.