दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्
दयानंदभाष्य खंडनम् -२
स्वामी जी कितने महान थे....
जहाँ जिस मंत्र में नियोग की गन्ध तक नहीं होती थी पहले तो वहाँ नियोग स्वयं गढ़ते थे फिर उसमें ११, ११ वाला तडका दे मारते थे। इसके बाद ही उसे मुर्ख समाजीयो के सामने परोसते थे आइए स्वामी जी की धूर्तता का एक नमूना दिखाता हूँ आपको ...
सत्यार्थ प्रकाश चतुर्थ संमुल्लास:
प्रोषितो धर्मकार्याथ प्रतिक्षयोष्टौ नरः समाः ।।
विद्यार्थ षड्यशसोर्थ वा कामार्थत्रीस्तुवत्सरान् ।। ( मनुस्मृति - 9/ 75 )
सत्यार्थ प्रकाश के चतुर्थ संमुल्लास मे दयानन्द जी ये इसका रेफरेन्स ( 9/76) मे दे रखा है खैर ये कोई मुद्दा नही है
आते है मुद्दे पर
स्वामी जी अपनी पुस्तक मे इसका अर्थ लिखते है की
" स्त्री । यदि पुरुष् धर्म कार्य के उद्देश्य से परदेश गया है तो 8 वर्ष , विद्या या कीर्ति के लिए गया है तो 6 वर्ष , और धन इत्यादि कमाने गया है तो 3 वर्ष उसकी राह देखे । उसके पश्चात नियोग करके संतान उत्त्पत्ति कर ले ।
जब विवाहित पति आवे तब नियुक्त पुरुष छूट जावे ।।
जबकि मनुस्मृति मे लिखा है ।
"पति के धर्मकार्य , विद्या-यश प्राप्ति तथा व्यापार के लिए विदेश जाने पर पत्नी को क्रमशः आठ , छह और तीन वर्षो तक उसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए"
इस मंत्र मे कही भी नियोग की कोई बात ही नही कहीं गई ।।
क्या स्वामी जी इन मंत्रो मे अपने आप से नियोग शब्द जोड़ देते है ???
इसके पश्चात स्वामी जी ने एक और मंत्र लिखा है ।।
एकादशे स्त्री जननी सद्यस्त्वप्रियवादिनि ।। ( मनुस्मृति मे -9/80 )
स्वामी जी इसका अर्थ लिखते है
"वैसे ही पुरुष के लिए भी नियम है , जब विवाह के आठ वर्ष तक स्त्री को गर्भ ही ना रहे , वन्ध्या हो तो आठवे , संतान हो कर मर जावे तो दशवे , जब जब हो तब तब कन्या , पुत्र न होवे तो ग्यारहवे और जो स्त्री अप्रिय बोलने वाली हो तो तुरंत उसको छोड़ कर किसी दूसरी स्त्री से नियोग करके संतानोतपत्ति कर लेवे "
जबकि मनुस्मृति मे लिखा है ।
"पत्नी के वन्ध्या, मृतक बच्चों को जन्म देने वाली तथा बार बार कन्या को ही जन्म देने वाली होने पर पति को क्रमशः आठवे, दसवे और ग्यारहवे वर्ष मे दूसरा विवाह करने का अधिकार है। स्त्री के कटुभाषिणी होने पर पुरुष उसी समय दूसरा विवाह कर सकता है"
हद है यार ये बंदा लोगों का कितना चुतिया बनाता था
जहाँ नियोग की गन्ध तक नहीं आती वहाँ भी नियोग घुसेड़ रखा है
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