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Hindu Mantavya: February 2017
HinduMantavya
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सत्यार्थप्रकाशान्तर्गत प्रथम समुल्लास की समीक्षा | Pratham Samullas Ki Samiksha

  यस्माज्जातम जगत्सर्वं  यस्मिन्नेव  प्रलीयते। येनेदं धार्यते चैव तस्मै ज्ञानात्मने  नमः॥   सत्यार्थप्रकाशान्तर्गतप्रथमसमुल्लासस्य खंडनंप्रारभ्यते   सत्यार्थ प्रकाश प्रथम समुल्लास पृष्ठ, ९ ❝ओ३म् शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्य्य मा। शन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः॥ नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि । त्वामेव प्रत्यक्षं बह्म्र  वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं...

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सत्यार्थ प्रकाश अन्तर्गत भूमिका की समीक्षा | Satyarth Prakash Bhumika

  (सत्यार्थ प्रकाश) भूमिका पृष्ठ, १ "जिस समय मैंने यह ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश’ बनाया था, उस समय और उस से पूर्व संस्कृतभाषण करने, पठन-पाठन में संस्कृत ही बोलने और जन्मभूमि की भाषा गुजराती होने के कारण से मुझ को इस भाषा का विशेष परिज्ञान न था, इससे भाषा अशुद्ध...

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स्वामी दयानंद का काशी शास्त्रार्थ | Swami Dayanand Ka Kashi Shastrarth

जब काशी शास्त्रार्थ में काशी के मूर्धन्य पंडितों के अग्रणी “स्वामी श्री विशुद्धानन्द जी महाराज” ने दुराग्रही स्वामी दयानन्द को शास्त्रार्थ में धूल चटाई— स्वामी दयानंद ने अपना तार्किक उल्लू सीधा करने के लिए एक बार काशी में शास्त्रार्थ कर के सनातन धर्म को समाप्त करके सनातन धर्म...

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थियोसोफिकल सोसायटी आफॅ द आर्य समाज | Theosophical Society of the Arya Samaj

इतिहास साक्षी है कि जब-जब इस भारतवर्ष की अखंडता और इसकी सनातन संस्कृति को शत्रुओं ने नष्ट करने का प्रयास किया है और सफल हुए तो उसके पीछे हमारे अपने जयचंद जैसे गद्दारों की बहुत बड़ी भूमिका रही है ऐसे ही एक व्यक्ति थे स्वामी दयानंद जिनका उद्देश्य...

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दयानंद, सत्यार्थ प्रकाश और उनके वेदभाष्यों कि वास्तविकता

पूर्व काल मे भारतवर्ष विद्या बुद्धि और सर्वगुणों की खान था, जिस समय इस भारत वर्ष की कीर्तिपताका भूमंडल के चारो तरफ फहरा रही थी उस समय कनो से सुनी कीर्तियो और नेत्रो से देखने निमित दूर देशो से लोग यहाँ आते थे और अपने नेत्रो को सुफलकर...

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दयानंद आत्मचरित- एक अधूरा सच (Dayanand Atamcharit)

  स्वामी दयानंद जीवन चरित्र | Swami Dayanand Jivan Chaitra स्वामी दयानंद एक साधारण मनुष्य थे, और उनके अंदर भी साधारण मनुष्यों की ही भाँति सभी गुण व दोष मौजूद थे, इसीलिए जब उन्होंने अपना आत्मचरित दुनिया के सामने रखा तो निश्चित ही एक साधारण मनुष्य की भाँति सिर्फ उनकी अच्छी...

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सत्यानाश प्रकाश- भूमिका (Satyanash Prakash Bhumika)

    ॐ इत्येतदक्षरमिदं सर्वं तस्योपव्याख्यानं भूतं भवद्भविष्यदिति सर्वमोंकार एव। यच्चान्यत्त्रिकालातीतं तदप्योंकार एव॥ भूमिका पूर्व काल मे भारतवर्ष विद्या बुद्धि और सर्वगुणों की खान था, जिस समय इस भारत वर्ष की कीर्तिपताका भूमंडल के चारो तरफ फहरा रही थी, उस समय कनो से सुनी कीर्तियो और नेत्रो से...

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महर्षि भारद्वाज (Maharishi Bharadwaj

यह पृष्ठ निर्माणाधीन है. आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है, हम जल्द इस इस पृष्ठ को संपादित करने की कोशिश करेंगे. पुनः पधारें ! ...

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महर्षि अगस्त्य (Maharishi Agastya)

महर्षि अगस्त्य का विद्युत्-शास्त्र | Electricity Formula by Maharishi Agastya महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। ये वशिष्ठ मुनि (राजा दशरथ के राजकुल गुरु)  के बड़े भाई थे। वेदों से लेकर पुराणों में इनकी महानता की अनेक बार चर्चा की...

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भास्कराचार्य (Bhaskarachārya)

भास्कराचार्य (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं।...

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वराह मिहिर (Varahamihira)

वराहमिहिर (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। ...

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महर्षि सुश्रुत (Maharishi Sushrut)

    आयु सम्बन्धी प्रत्येक जानने योग्य ज्ञान (वेद) को आयुर्वेद कहते है, आयुर्वेद सम्बन्धी सिद्धान्तों का क्रमबद्ध संकलन कर ऋषियों ने अनेक संहिताओ का निर्माण किया है, इस संहिताओ में सुश्रुत संहिता, शल्य तंत्र प्रधान और चरक संहिता काय चिकित्सा प्रधान ग्रन्थ है, इन ग्रंथो के रचयिता...

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आर्यभट (Aryabhatta)

      आर्यभट भारत ही नही बल्कि प्राचीन विश्व के एक महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे। आचार्य आर्यभट ने वैज्ञानिक उन्नति में केवल योगदान ही नही दिया बल्कि उसमें चार चांद लगाए। इस महान वैज्ञानिक का जन्म भारत का स्वर्ण युग कहे जाने वाले गुप्त काल में...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् २० (Atharvved Kand 20)

अथर्ववेद संहिता ॥ अथ विंशं काण्डम् ॥  प्रथमं सूक्तम्» तृचस्यास्य सूक्तस्य क्रमेण विश्वामित्रो गोतमो विरूपश्च ऋषय: । इन्द्रो मरुतोऽग्निश्च क्रमेण देवता: | गायत्री छन्द:॥ (hindumantavya.blogspot.in) इन्द्र॑ त्वा वृषभं वयं सुते सोमे॑ हवामहे ।स पा॑हि मध्वो अन्ध॑स: ॥१॥ मरु॑तो यस्य हि क्षये॑ पाथा दिवो वि॑महस: ।स सु॑गोपात॑मो जन॑: ॥२॥...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १९ (Atharvved Kand 19)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ एकोनविंशं काण्डम्॥   प्रथमं सूक्तम्» तृचस्यास्य सुक्तस्य ब्रह्मा ऋषि: | यज्ञश्चन्द्रमाश्च देवता: | प्रथमाद्वितीययोरृचो: पथ्याबृहती  तृतीयायाश्च पङ्क्तिश्छन्दांसि॥ (hindumantavya.blogspot.in)     संसं स्र॑वन्तु नद्य१ सं वाता: सं प॑तत्रिण॑: ।यज्ञमिमं व॑र्धयता गिर: संस्राव्येद्गण हविषा॑ जुहोमि ॥१॥ इमं होमा॑ यज्ञम॑वतेमं सं॑स्रावणा उत ।यज्ञमिमं व॑र्धयता गिर: संस्राव्येद्गण हविषा॑...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १८ (Atharvved Kand 18)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ अष्टादशं काण्डम्॥   प्रथमं सूक्तम्» एकषष्ठ्यृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: | प्रथमाद्येकोनचत्वारिंशदृचां सप्तचत्वारिंश्यादिचतसृणां त्रिपञ्चाश्यादिनवानाञ्च यमो मन्त्रोक्ताश्च  चत्वारिंश्या रुद्र:  एकचत्वारिंश्यादितृचस्य सरस्वती चतुश्चत्वारिंश्यादितृचस्यैकपञ्चाशीद्विपञ्चाश्योश्च पितरो देवता: | प्रथमादिसप्तानां नवम्यादिपञ्चानां षोडशीसप्तदश्योश्चतुर्विंश्यादित्रयोदशानामेकोनचत्वारिंश्यादिदशानामेकपञ्चाश्यादिपञ्चानामष्टपञ्चाशीषष्ट्योश्च त्रिष्टुप्  अष्टमीपञ्चदश्योरार्षी पङ्क्ति: चतुर्दश्येकोनपञ्चाशीपञ्चाशीनां भुरिक्त्रिष्टुप् अष्टादश्यादिषण्णां जगती सप्तत्रिंश्यष्टात्रिंश्यो: परोष्णिक् षट्पञ्चाशीसप्तपञ्चाश्येकषष्टीनामनुष्टुप्  एकोनषष्ट्याश्च पुरोबृहती छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in)     ओ चित्सखा॑यं सख्या...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १७ (Atharvved Kand 17)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ सप्तदशं काण्डम्॥   प्रथमं सूक्तम्» त्रिंशदृचस्यास्य सूक्तस्य ब्रह्मा ऋषि: | आदित्यो देवता: |  प्रथमर्चस्त्र्यवसाना षट्पदा जगती  द्वितीयादिचतसृणां त्र्यवसाना षट्पदातिजगती  षष्ठीसप्तम्योस्त्र्यवसाना सप्तपदात्यष्टि:  अष्टम्यास्त्र्यवसाना सप्तपदातिधृति:  नवमीचतुर्दशीपञ्चदशीनां पञ्चपदा शक्वरी  दशम्यास्त्र्यवसानाष्टपदा धृति:  एकादशीषोडश्योस्त्र्यवसाना सप्तपदातिधृति:  द्वादश्यास्त्र्यवसाना सप्तपदा कृति:  त्रयोदश्यास्त्र्यवसाना सप्तपदा प्रकृति:  सप्तदश्या: पञ्चपदा विराडतिशक्वरी  अष्टादश्यास्त्र्यवसाना सप्तपदा भुरिगष्टि:  एकोनविंश्यास्त्र्यवसाना सप्तपदात्यष्टि: ...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १६ (Atharvved Kand 16)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ षोडशं काण्डम्॥  प्रथम: सूक्तम्» त्रयोदशर्चस्यास्य पर्यायस्याथर्वा ऋषि: । प्रजापतिर्देवता ।   प्रथमातृतीययोरृचोर्द्विपदा साम्नी बृहती  १ द्वितीयादशम्योर्याजुषी त्रिष्टुप्  चतुर्थ्या आसुरी गायत्री  पञ्चम्या द्विपदा साम्नी पङ्क्ति:  षष्ठ्या: साम्न्यनुष्टुप्  सप्तम्या निचृद्विराड्गायत्री  अष्टम्या: साम्नी पङ्क्ति:  नवम्या आसुरी पङ्क्ति:  एकादश्या: साम्न्युष्णिक् द्वादशीत्रयोदश्योश्चार्च्यनुष्टुप् छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in)   अति॑सृष्टो अपां वृ॑षभोऽति॑सृष्टा अग्नयो॑ दिव्या:...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १५ (Atharvved Kand 15)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ पञ्चदशं काण्डम्॥   प्रथम: पर्याय:» व्रात्य आसीत् इत्यारभ्य अह्ना प्रत्यङ् इत्यन्तानामष्टादशपर्यायाणामथर्वा ऋषि: | प्रथमादिचतुर्णां षष्ठादित्रयोदशानाञ्च पर्यायाणामध्यात्मं व्रात्यो वा पञ्चमस्य च रुद्रो देवता: | अष्टर्चस्यास्य पर्यायस्य  प्रथमर्च: साम्नी पङ्क्ति:  द्वितीयाया द्विपदा साम्नी बृहती  तृतीयाया एकपदा यजुर्ब्राह्म्यनुष्टुप्  चतुर्थ्या एकपदा विराड्गायत्री  पञ्चम्या: साम्न्यनुष्टुप्  षष्ठ्यास्त्रिपदा प्राजापत्या बृहती सप्तम्या...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १४ (Atharvved Kand 14)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ चतुर्दशं काण्डम्॥  प्रथमं सूक्तम्» चतु:षष्ट्यृचस्यास्य सूक्तस्य सावित्री सूर्या ऋषि: |  प्रथमादिपञ्चर्चां सोम:  षष्ठ्या: स्वविवाह: २सप्तम्यादिषोडशानां षड्विंश्या अष्टाविंश्यादिसप्तत्रिंशतश्चात्मा  त्रयोविंश्या: सोमार्कौ  चतुर्विंश्याश्चन्द्रमा:  पञ्चविंश्या नृणां विवाहमन्त्राशिषो वधूवास:संस्पर्शमोचनञ्च  सप्तविंश्याश्च वधूवास:संस्पर्शमोचनं देवता: | प्रथमादित्रयोदशानां षोडश्यादितृचस्य द्वाविंश्या: पञ्चविंश्यादिचतसृणां त्रिंशीपञ्चत्रिंशीषट्त्रिंशीनामेकचत्वारिंश्यादिचतसृणामेकपञ्चाशीद्विपञ्चा-शीद्विषष्टीत्रिषष्टीनाञ्चानुष्टुप्  चतुर्दश्या विराट् प्रस्तारपङ्क्ति:  पञ्चदश्या आस्तारपङ्क्ति: एकोनविंशीविंशीचतुर्विंशीद्वात्रिंशीत्रयस्त्रिंशीसप्तत्रिंश्येकोनचत्वारिंशीचत्वारिंशीसप्तचत्वारिंश्येकोनपञ्चाशीपञ्चाशीत्रिपञ्चाशीषट्पञ्चाशीसप्तपञ्चा-शीनां अष्टपञ्चाश्येकोनषष्ट्येकषष्टीनाञ्च त्रिष्टुप् एकविंशीषट्चत्वारिंश्योर्जगती त्रयोविंश्येकत्रिंशीपञ्चचत्वारिंशीनां बृहतीगर्भा...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १३ (Atharvved Kand 13)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ त्रयोदशं काण्डम्॥    प्रथमं सूक्तम्» षष्ट्यृचस्यास्य सूक्तस्य ब्रह्मा ऋषि: |  प्रथमाद्वितीययोरृचोश्चतुर्थ्यादिचतुर्विंशतेर्द्वात्रिंश्याद्येकोनत्रिंशतश्चाध्यात्मरोहिदादित्या:  तृतीयाया: मरुत: अष्टाविंश्यादितृचस्याग्नि: एकत्रिंश्याश्चाग्निर्मन्त्रोक्ताश्च देवता: | प्रथमाद्वितीयाषष्ठीसप्तमीदशम्येकादशीविंशीनां द्वाविंश्यादिचतसृणां सप्तविंशीत्रयस्त्रिंशीचतुस्त्रिंश्यष्टात्रिंश्येकचत्वारिंशीषट्पञ्चाश्यष्टपञ्चाशीनाञ्च त्रिष्टुप् तृतीयादितृचस्य नवमीद्वादश्योश्च जगती  अष्टम्या भुरिक्त्रिष्टुप्  त्रयोदश्या अतिशाक्वरगर्भातिजगती  चतुर्दश्यास्त्रिपदा पुर:परशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्मा पङ्क्ति:  पञ्चदश्या अतिजागतगर्भा जगती षोडश्येकोनत्रिंशीत्रिंशीद्वात्रिंश्येकोनचत्वारिंशीचत्वारिंशीनां पञ्चचत्वारिंश्यादिसप्तानां त्रिपञ्चाशीचतुष्पञ्चाश्योश्चानुष्टुप्  सप्तदश्या: पञ्चपदा ककुम्मती जगती  अष्टादश्या: पञ्चपदा...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १२ (Atharvved Kand 12)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ द्वादशं काण्डम्॥   प्रथमं सूक्तम्» त्रिषष्ट्यृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: | भूमिर्देवता: |  प्रथमातृतीयासप्तदश्येकोनत्रिंश्येकत्रिंशीपञ्चपञ्चाशीषष्टीनामृचां त्रिष्टुप्  द्वितीयाया भुरिक्त्रिष्टुप्  चतुर्थ्यादितृचस्य दशम्यष्टात्रिंश्योश्च त्र्यवसाना षट्पदा जगती  सप्तम्या: प्रस्तारपङ्क्ति:  अष्टम्येकादश्योस्त्र्यवसाना षट्पदा विराडष्टि:  नवम्या: परानुष्टुप्त्रिष्टुप् द्वादशीत्रयोदशीसप्तत्रिंशीनां त्र्यवसाना पञ्चपदा शक्वरी चतुर्दश्या महाबृहती  पञ्चदश्या: पञ्चपदा शक्वरी षोडश्येकविंश्योरेकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्  अष्टादश्यास्त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुबनुष्टुब्गर्भातिशक्वरी  एकोनविंश्या उरोबृहती ...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ११ (Atharvved Kand 11)

अथर्ववेद संहिता   ॥अथ एकादशं काण्डम्॥    प्रथमं सूक्तम्» सप्तत्रिंशदृचस्यास्य सूक्तस्य ब्रह्मा ऋषि: | ब्रह्मौदनो देवता: | प्रथमर्चोनुष्टुब्गर्भा भुरिक्पङ्क्ति:   द्वितीयापञ्चम्योर्बृहतीगर्भा विराट्त्रिष्टुप् तृतीयायाश्चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती चतुर्थीपञ्चदशीषोडश्येकत्रिंशीनां भुरिक्त्रिष्टुप् षष्ठ्या उष्णिक्  सप्तम्या द्वादश्यादितृचस्यैकोनविंशीद्वाविंशीत्रयोविंश्यष्टाविंशीत्रिंशीनां द्वात्रिंश्यादितृचस्य च त्रिष्टुप्  अष्टम्या विराड्गायत्री  नवम्या: शाक्वरातिजागतगर्भा जगती  दशम्या: पुरोऽतिजगती विराड्जगती  एकादश्या जगती सप्तदश्येकविंश्योश्चतुर्विंश्यादितृचस्य सप्तत्रिंश्याश्च विराड्जगती  अष्टादश्या अतिजागतगर्भा...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १० (Atharvved Kand 10)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ दशमं काण्डम् ॥   प्रथमं सूक्तम्» द्वात्रिंशदृचस्यास्य सूक्तस्य प्रत्यङ्गिरस ऋषि: | कृत्यादूषणं देवता: |  प्रथमर्चो महाबृहती  द्वितीयाया विराड्गायत्री तृतीयादिषण्णां दशम्येकादशीचतुर्दश्येकविंशीनां पञ्चविंश्यादितृचस्य त्रिंश्येकत्रिंश्योश्चानुष्टुप्  नवम्या: पथ्यापङ्क्ति:  द्वादश्या: पङ्क्ति:  त्रयोदश्या उरोबृहती  पञ्चदश्याश्चतुष्पदा विराड्जगती षोडश्यष्टादश्योस्त्रिष्टुप् सप्तदशीचतुर्विंश्यो: प्रस्तारपङ्क्ति:  एकोनविंश्याश्चतुष्पदा जगती  विंश्या विराट् प्रस्तारपङ्क्ति:  द्वाविंश्या एकावसाना द्विपदार्च्युष्णिक्  त्रयोविंश्यास्त्रिपदा भुरिग्विषमा...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ९ (Atharvved Kand 9)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ नवमं काण्डम् ॥  प्रथमं सूक्तम्» चतुर्विंशत्यृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: | मध्वश्विनौ च देवता: | प्रथमाचतुर्थीपञ्चमीनामृचां त्रिष्टुप्  द्वितीयायास्त्रिष्टुब्गर्भा पङ्क्ति: तृतीयाया: परानुष्टुप्त्रिष्टुप्  षष्ठ्या अतिशाक्वरगर्भा यवमध्या महाबृहती  सप्तम्या अतिजागतगर्भा यवमध्या महाबृहती  अष्टम्या बृहतीगर्भा संस्तारपक्ति:  नवम्या: पराबृहती प्रस्तारपङ्क्ति:  दशम्या: परोष्णिक्पङ्क्ति:  एकादश्यादितृचस्य पञ्चदशीषोडश्यष्टादश्येकोनविंशीनाञ्चानुष्टुप्  चतुर्दश्या: पुर उष्णिक् सप्तदश्या उपरिष्टाद्विराड्बृहती  विंश्या...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ८ (Atharvved Kand 8)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ अष्टमं काण्डम् ॥  प्रथमं सूक्तम्» एकविंशत्यृचस्यास्य सूक्तस्य ब्रह्मा ऋषि: | आयुर्देवता: |  प्रथमर्च: पुरोबृहती त्रिष्टुप्  द्वितीयातृतीययो: सप्तदश्यादिपञ्चानाञ्चानुष्टुप् चतुर्थीनवमीपञ्चदशीषोडशीनां प्रस्तारपङ्क्ति: पञ्चमीषष्ठीदशम्येकादशीनां त्रिष्टुप् सप्तम्यास्त्रिपदा विराड्गायत्री  अष्टम्या विराट्पथ्याबृहती द्वादश्यास्त्र्यवसाना पञ्चपदा जगती  त्रयोदश्यास्त्रिपदा भुरिग्महाबृहती चतुर्दश्याश्चैकावसाना द्विपदा साम्नी भुरिग्बृहती छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in)   अन्त॑काय मृत्यवे नम॑: प्राणा अ॑पाना इह...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ७ (Atharvved Kand 7)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ सप्तमं काण्डम् ॥ प्रथमं सूक्तम्» द्व्यृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: | आत्मा देवता: | प्रथमर्चस्त्रिष्टुप्  द्वितीयायाश्च विराड्जगती छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in) धीती वा ये अन॑यन्वाचो अग्रं मन॑सा वा येऽव॑दन्नृतानि॑ । तृतीये॑न ब्रह्म॑णा वावृधानास्तुरीयेणामन्वत नाम धेनो: ॥१॥ स वे॑द पुत्र: पितरं स मातरं स सूनुर्भु॑वत्स भु॑वत्पुन॑र्मघ: । स...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ६ (Atharvved Kand 6)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ षष्ठं काण्डम् ॥  प्रथमं सूक्तम्» तृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: | सविता देवता: | प्रथमर्चस्त्रिपदा पिपीलिकमध्या साम्नी जगती द्वितीयातृतीययोश्च पिपीलिकमध्या पुर उष्णिक् छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in) दोषो गा॑य बृहद्गा॑य द्युमद्धे॑हि । आथ॑र्वण स्तुहि देवं स॑वितार॑म् ॥१॥ तमु॑ ष्टुहि यो अन्त: सिन्धौ॑ सूनु: । सत्यस्य युवा॑नमद्रो॑घवाचं सुशेव॑म् ॥२॥...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ५ (Atharvved Kand 5)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ पञ्चमं काण्डम् ॥  प्रथमं सूक्तम्» नवर्चस्यास्य सूक्तस्य बृहद्दिवोऽथर्वा ऋषि: | वरुणो देवता: | प्रथमर्च: पराबृहती त्रिष्टुप्   द्वितीयादिपञ्चानामष्टम्याश्च त्रिष्टुप् सप्तम्या विराट् त्रिष्टुप्  नवम्याश्च त्र्यवसाना षट्पदात्यष्टिश्छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in)     ऋध॑ङ्मन्त्रो योनिं य आ॑बभूवामृता॑सुर्वर्ध॑मान: सुजन्मा॑ । अद॑ब्धासुर्भ्राज॑मानोऽहे॑व त्रितो धर्ता दा॑धार त्रीणि॑ ॥१॥ आ यो धर्मा॑णि प्रथम:...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ४ (Atharvved Kand 4)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ चतुर्थं काण्डम् ॥   प्रथमं सूक्तम्» सप्तर्चस्यास्य सूक्तस्य वेन ऋषि: | बृहस्पतिरादित्यो वा देवता: | प्रथमातृतीयाचतुर्थीषष्ठीसप्तमीनामृचां त्रिष्टुप्  द्वितीयापञ्चम्योश्च भुरिक्त्रिष्टुप् छन्दसी॥ (www.hindumantavya.blogspot.in) ब्रह्म॑ जज्ञानं प्र॑थमं पुरस्ताद्वि सी॑मत: सुरुचो॑ वेन आ॑व: । स बुध्न्याद्ग उपमा अ॑स्य विष्ठा: सतश्च योनिमस॑तश्च वि व॑: ॥१॥ इयं पित्र्या राष्ट्र्येत्वग्रे॑...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् ३ (Atharvved Kand 3)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ तृतीयं काण्डम् ॥   प्रथमं सूक्तम्» षडृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: |  प्रथमर्चोऽग्नि: द्वितीयाया मरुत:  तृतीयादिचतसृणाञ्चेन्द्रो देवता: |  प्रथमाचतुर्थ्योस्त्रिष्टुप्  द्वितीयाया विराड्गर्भा भुरिक्त्रिष्टुप् तृतीयाषष्ठयोरनुष्टुप्  पञ्चम्याश्च विराट् पुरउष्णिक् छन्दांसि॥ (www.hindumantavya.blogspot.in) अग्निर्न: शत्रून्प्रत्ये॑तु विद्वान्प्र॑तिदह॑न्नभिश॑स्तिमरा॑तिम् । स सेनां॑ मोहयतु परे॑षां निर्ह॑स्तांश्च कृणवज्जातवे॑दा: ॥१॥ यूयमुग्रा म॑रुत ईदृशे॑ स्थाभि प्रेत॑ मृणत...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् २ (Atharvved Kand 2)

अथर्ववेद संहिता   ॥ अथ द्वितीयं काण्डम् ॥   प्रथमं सूक्तम्» पञ्चर्चस्यास्य सूक्तस्य वेन ऋषि: | ब्रह्मात्मा देवता: |  प्रथमाद्वितीयाचतुर्थीपञ्चमीनामृचां त्रिष्टुप्  तृतीयायाश्च जगती छन्दसी॥ (www.hindumantavya.blogspot.in)   वेनस्तत्प॑श्यत्परमं गुहा यद्यत्र विश्वं भवत्येक॑रूपम् । इदं पृश्नि॑रदुहत्तय॑माना: स्वर्विदो॑ अभ्यद्गनूषत व्रा: ॥१॥ प्र तद्वो॑चेदमृत॑स्य विद्वान्ग॑न्धर्वो धाम॑ परमं गुहा यत् । त्रीणि॑ पदानि...

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अथर्ववेद संहिता- काण्डम् १ (Atharvved Kand 1)

अथर्ववेद संहिता ॥ अथ प्रथमं काण्डम् ॥   प्रथमं सूक्तम्» चतुरृचस्यास्य सूक्तस्याथर्वा ऋषि: | वाचस्पतिर्देवता: | प्रथमादितृचस्यानुष्टुप् चतुर्थ्या ऋचश्च चतुष्पदा विरादुरोबृहती छन्दसी॥ (www.hindumantavya.blogspot.in) ये त्रि॑षप्ता: प॑रियन्ति विश्वा॑ रूपाणि बिभ्र॑त: । वाचस्पतिर्बला तेषां॑ तन्वोद्ग अद्य द॑धातु मे ॥१॥ पुनरेहि॑ वचस्पते देवेन मन॑सा सह । वसो॑ष्पते नि र॑मय मय्येवास्तु मयि॑...

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय अठारह श्लोक 01-78

मोक्षसंन्यासयोग » त्याग का विषय; कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन; तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद; फल सहित वर्ण धर्म का विषय; ज्ञाननिष्ठा का विषय; भक्ति सहित कर्मयोग का विषय; श्रीगीताजी का माहात्म्य अर्जुन उवाच सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि...

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