आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब
आर्य समाज का वैदिक ढोंग ( Arya Samaj Ka Vedic Dhong )
आज आर्य समाज ये कहते हुए नही थकता की हम वैदिक है ।
हमारा आचरण वैदिक है
आइये एक नजर डालते है
इनके वैदिक कारनामो पर ।
हम सब जानते है की आर्य मंदिर मे प्रेमी जोड़े की शादिया आर्य समाज करवाता है ।
बहुत अच्छी बात है ये सम्मान के काबिल है उनका ये कदम ।
बहुत सी शादिया आर्य समाजियों ने हिन्दू - मुस्लिम की भी करवाई है
और उनको आर्य समाज से जोड़ा है ।
बहुत अच्छा कर्म है ये आज की दृष्टिकोण से ।।
ऐसा करने से आर्य समाजियों को अपने फोल्लोवर्स बढ़ाने मे काफी मदद मिलती है
क्योंकि जब उन प्रेमी जोड़े की कोई नही सुनता तब उनकी आर्य समाज सुनता है
ऐसे मे प्रेमी जोड़े तन मन धन से आर्य समाज से अटूट श्रद्धा और विस्वास कर लेते है ।।
मगर क्या उनका ये तरीका वैदिक है ??
मेरे मन मे ये ख्याल आया तब जब उन्होंने 2-3बार विवाह की फोटो अपलोड की और कहा की आर्य समाज ने वैदिक तरीके से शादी करवाई ।
मेरा मन व्याकुल हो गया की प्रश्न उठा की क्या ऐसी शादिया वेद सम्मत है ??
अगर नही तो फिर वैदिक तरीके से विवाह करवाने का क्या औचित्य ??
जी हा ऐसे विवाह वेद सम्मत नही है ।।
जब लड़का लड़की स्वयं एक दूसरे को पसंद करके विवाह बंधन मे बंध जाते है तो ऐसे विवाह को गांधर्व विवाह बताया गया है
जिसका वर्णन कुछ इस प्रकार है
इच्छयाSन्योसंयोग:कन्यायाश्चवरस्य च ।
गान्धर्व: स तु विज्ञेयो मैथुन्य: कमसम्भव: ।।
अर्थात - कन्या और वर का अपनी इच्छा से एक दूसरे को पसंद करके विवाह- बंधन मे बंध जाना 'गांधर्व विवाह' कहलाता है । इस प्रकार का विवाह कामजन्य वासना की तृप्ति पर आधृत होता है ।
हत्वा छित्वा च भित्वा क्रोशंतीं रुदंतीं गृहात् ।
प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिरुच्यते ।।
अर्थात- कन्या के अभिभावक का वध करके अथवा उसके हाथ पाव आदि पर चोट मार करके अथवा उनके मकान को तोड़ फोड़ करके रोती हुई कन्या को बलपूर्वक छीनकर अपने अधिकार मे करना "राक्षस विवाह"कहलाता है ।
इतरेशु तु शिष्टेषु नृशन्सानृतवादिन: ।
जायन्ते दुर्विवाहेषु ब्रह्मधर्मद्विष: सुता: ।।
असुर और गांधर्व विवाह से उतपन्न होने वाले पुत्र क्रूर , मिथ्याभाषी , ब्राह्मणों के विरोधी , तथा धर्म से द्वेष करने वाले निर्लज्ज प्रकृति के होते है ।
तो अब मेरा सवाल ये है की क्या आर्य समाज द्वारा करावाया गया ये विवाह धर्म सम्मत है ??
नही क्योंकि गन्धर्व और असुर विवाह क्षत्रियो के धर्म सम्मत बताये गए है उसपे भी आगे पाबंदी है
लिखा हुआ है ।
अनीन्दितै: स्त्रीविवाहैरनिन्ध्या भवति प्रजा ।
निन्दितैर्निन्दिता: नृणां तस्मान्निन्द्यान्विर्वजयेत् ।।
आनंदित ( श्रेष्ठ ) विवाह ( ब्रह्म , देव , आर्ष , प्रजापत्य ) से उत्पन्न होने वाली संतान श्रेष्ठ होती है और इसके विपरीत निकृष्ट एवं निन्दित विवाह से उतपन्न होने वाली संतान निकृष्ट और ओछी होती है ।
अत: श्रेष्ठ संतान के इछुक लोगो को निकृष्ट प्रकर्ति के विवाहो का त्याग करना चाहिए ।।
अब बताये क्या आर्य समाज वैदिक विवाह करवाता है ???
जब वो हिन्दू मुस्लिम की शादी करवाता है तब कहा जाते है इनके वेद ??
दुनिया जानती है इस्लाम राक्षस प्रवर्ति का धर्म है ।
फिर एक राक्षस जाती से मानव जाती का विवाह क्या समाज को उत्तम बनाएगा ??
( वेदों के हिसाब से कभी नही बनाएगा । हा किसी नीति के तहत हो तो बात अलग है जैसे घटोतकच का इस्तेमाल महाभारत मे हुआ था)
क्या है ये वैदिक ???
नही है कदापि नही है ।।
इसलिए आर्य समाज ये वैदिक वैदिक का ढोंग करना बंद कर दे
वेद का प्रचार करना है तो सही से करे अन्यथा समाज को भ्रमित बिल्कुल भी मत करे ।।
हिन्दुओ ये तुम्हारी संस्कृति को नष्ट कर देंगे तुम्हारी छाती पर चढ़कर
अभी वक़्त है समझ लो ।।
आर्य समाज सिर्फ अपना विस्तार कर रहा है
इसमे हिन्दू हितैसी जैसी कोई बात नही है ।।
3 comments
महान बुद्धू! आपने ऊपर दिये गए गंधर्व विवाह के श्लोक कौनसे वेद से लिए हैं? कौनसे सूक्त मंत्र में और मनुस्मृति इत्यादि में कहाँ बताया गया है ऊपर आपके द्वारा बताया ज्ञान। ये सब आप जैसे संस्कृत जानने वाले मूरखों ने ही तो रचे हैं। महर्षि ने तो केवल वेदोक्त वचन ही कहे हैं, तुम जैसों के कारण ही तो ये सब आर्य से हिन्दू फिर जैन फिर सिख, फिर अब भीम इत्यादि बनकर अलग धर्म बनाए चल रहे हैं और लड़ रहे हैं। इतने ही सिद्ध और सच्चे हो तो क्यों नहीं मूर्ति पुजा के बल पर रोक लिया इतना विघटन होने से और इतने धर्म बनने से?
ReplyDeleteवेदों के मंत्रों से उत्तर दो और किस धमर की बात करते हो तुम लोग जो तुम्हारा मनगढ़ंत पुरानों में रचा हुआ है उसकी जिसके न सिर न हट न पैर। अरे पाखंडियो तुम लोगों के व्यापार को तुम लोग मरने नही दे सकते इसलिए जो भी तुम ढोंगियों की पोल खोलता है तुम लोग लग जाते हो उसके पीछे स्वयं की मूर्खता सिद्ध करने
अरे धूर्त आर्य समाज नहीं होता तो देश स्वाधीन नहीं होता, स्वामी श्रद्धानन्द की बात मानली होती तो कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा नहीं होती
ReplyDeleteवामपंथी और भीमटो की शरण मे जाने से अच्छा ही है कि आर्य समाज में चले जायें।
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