आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्
असत्यवादी महाधूर्त दयानंद ( Astaywadi Mahadhurt Dayananad )
सत्यार्थ प्रकाश प्रथम समुल्लास मंगलचरण न करने का खंडन
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(प्रश्न) जैसे अन्य ग्रन्थकार लोग आदि, मध्य और अन्त में मंगलाचरण करते हैं वैसे आपने कुछ भी न लिखा, न किया?
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(प्रश्न) जैसे अन्य ग्रन्थकार लोग आदि, मध्य और अन्त में मंगलाचरण करते हैं वैसे आपने कुछ भी न लिखा, न किया?
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(उत्तर) ऐसा हम को करना योग्य नहीं। क्योंकि जो आदि, मध्य और अन्त में मंगल करेगा तो उसके ग्रन्थ में आदि मध्य तथा अन्त के बीच में जो कुछ लेख होगा वह अमंगल ही रहेगा। इसलिए ‘मंगलाचरणं शिष्टाचारात् फलदर्शनाच्छ्रुतितश्चेति ।’ यह सांख्यशास्त्र का वचन है।
इस का यह अभिप्राय है कि जो न्याय, पक्षपातरहित, सत्य, वेदोक्त ईश्वर की आज्ञा है, उसी का यथावत् सर्वत्र और सदा आचरण करना मंगलाचरण कहाता है। ग्रन्थ के आरम्भ से ले के समाप्तिपर्यन्त सत्याचार का करना ही मंगलाचरण है, न कि कहीं मंगल और कहीं अमंगल लिखना।
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समीक्षा : धूर्तों में धुर्त 'दयानंद' बड़े बड़े धुर्त देखें पर दयानंद जैसा धुर्त नहीं देखा इस धुर्त की धूर्तता तो देखिए अभी प्रथम समुल्लास ही लिख रहा है और झुठ यही से आरंभ कर दिया तो आगे क्या क्या गडबड घोटाला किया होगा
यहाँ दयानंद की धूर्तता का एक नमूना देखिए स्वयं मंगलचरण करता जा रहा है और पूछने पर मना भी कर रहा है
यदि दयानंद ने मंगलचरण नहीं किया तो कोई नियोग समाजी ये बताने का कष्ट करेगा कि सत्यार्थ प्रकाश भूमिका के पहले "ओ३म् सच्चिदानंदेश्वरायनमोनम:" , अथसत्यार्थप्रकाश: और शन्नोमित्रादि सत्यार्थ प्रकाश के प्रारंभ में और अंत में फिर शन्नोमित्र इत्यादि और यह सौ नाम प्रमेश्वर के किस आशय से लिखे है तथा अपने वेदभाष्य के प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में विश्वानिदेवेत्यादि क्यों लिखा है इससे तो तुम्हारे लेखानुसार यह पता चलता है कि तुम्हारे वेदभाष्य और सत्यार्थ प्रकाश के बीच - बीच में अमंगलचरण ही भरा हुआ है
ना जाने किस मुर्ख समाजी ने दयानंद को ऋषि की उपाधि दे दी जितने झूठ दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में बोले है उतना तो कोई असत्य प्रकाश में भी ना बोलें
इस का यह अभिप्राय है कि जो न्याय, पक्षपातरहित, सत्य, वेदोक्त ईश्वर की आज्ञा है, उसी का यथावत् सर्वत्र और सदा आचरण करना मंगलाचरण कहाता है। ग्रन्थ के आरम्भ से ले के समाप्तिपर्यन्त सत्याचार का करना ही मंगलाचरण है, न कि कहीं मंगल और कहीं अमंगल लिखना।
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समीक्षा : धूर्तों में धुर्त 'दयानंद' बड़े बड़े धुर्त देखें पर दयानंद जैसा धुर्त नहीं देखा इस धुर्त की धूर्तता तो देखिए अभी प्रथम समुल्लास ही लिख रहा है और झुठ यही से आरंभ कर दिया तो आगे क्या क्या गडबड घोटाला किया होगा
यहाँ दयानंद की धूर्तता का एक नमूना देखिए स्वयं मंगलचरण करता जा रहा है और पूछने पर मना भी कर रहा है
यदि दयानंद ने मंगलचरण नहीं किया तो कोई नियोग समाजी ये बताने का कष्ट करेगा कि सत्यार्थ प्रकाश भूमिका के पहले "ओ३म् सच्चिदानंदेश्वरायनमोनम:" , अथसत्यार्थप्रकाश: और शन्नोमित्रादि सत्यार्थ प्रकाश के प्रारंभ में और अंत में फिर शन्नोमित्र इत्यादि और यह सौ नाम प्रमेश्वर के किस आशय से लिखे है तथा अपने वेदभाष्य के प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में विश्वानिदेवेत्यादि क्यों लिखा है इससे तो तुम्हारे लेखानुसार यह पता चलता है कि तुम्हारे वेदभाष्य और सत्यार्थ प्रकाश के बीच - बीच में अमंगलचरण ही भरा हुआ है
ना जाने किस मुर्ख समाजी ने दयानंद को ऋषि की उपाधि दे दी जितने झूठ दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में बोले है उतना तो कोई असत्य प्रकाश में भी ना बोलें
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