HinduMantavya
Loading...

ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त ५

Google+ Whatsapp

[ऋषि - मधुच्छन्दा वैश्वामित्र। देवता- इन्द्र। छन्द- गायत्री]



४१. आ त्वेता नि षिदतेन्द्रमभि प्र गायत । सखाय: स्तोमवाहस: ॥१॥

हे याज्ञिक मित्रो! इन्द्रदेव को प्रसन्न करने ले लिये प्रार्थना करने हेतु शीघ्र आकर बैठो और् हर प्रकार् से उनकी स्तुति करो ॥१॥
 
४२. पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम् । इन्द्रं सोमे सचा सुते ॥२॥

(हे याजक मित्रो! सोम् के अभिषुत होने पर) एकत्रित होकर् संयुक्तरूप से सोमयज्ञ मे शत्रुओ को पराजित् करने वाले ऐश्वर्य के स्वामी ओन्द्रदेव की अभ्यर्थना करो ॥२॥
४३. स घा नो योग आ भुवत् स राये स् पुरन्द्याम् । गमद् वाजेभिरा स न: ॥३॥

वे इन्द्रदेव हमारे पुरषार्थ को प्रखर बनाने मे सहायक हो, धन धान्य से हमे परिपूर्ण करें तथा ज्ञानप्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुये पोषक अन्न सहित हमारे निकट आयें ॥३॥
 
४४. यस्यं स्ंस्थे न वृण्व्ते हरी समत्सु शत्रव:। तस्मा इन्द्राय गायत॥४॥

(हे याजको!) संग्राम मे जिनके अश्वो से युक्त रथो के सम्मुख शत्रु टिक नही सकते, उन इन्द्रदेव के गुणो का आप गान करे॥४॥
 
४५. सुतओआव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये। सोमासो दध्याशिर:॥५॥

यह निचोड़ा और शुद्ध किया हुआ दही मिश्रित सोमरस, सोमपान की इच्छा करने वाले वाले इन्द्रदेव के निमित्त प्राप्त हो ॥५॥
 
४६. त्वं सुतस्य पीतवे सद्यो वृद्धो अजायथा:। इन्द्र ज्यैष्ठय्याय सुक्रतो॥६॥

हे उत्तम कर्म वाले इन्द्रदेव! आप सोमरस पीने के लिये देवताओ मे सर्वश्रेष्ठ होने के लीये तत्काल वृद्ध रूप हो जाते है॥६॥
 
४७. आ त्वा विशन्त्वाशव: सोमास इन्द्र गिर्वण:। शं ते सन्तु प्रचेतसे॥७॥

हे इन्द्रदेव! तीनो सवनो मे व्याप्त रहने वाला यह सोम, आपके सम्मुख उपस्थित रहे एवं आपके ज्ञान को सुखपूर्वक संमृद्ध करें॥७॥
 
४८. त्वा स्तोमा अवीवृधन् त्वामुक्था शतक्रतो। त्वां वर्धन्तु नो गिर:॥८॥

हे सैकड़ो यज्ञ करने वाले इन्द्रदेव! स्तोत्र आपकी वृद्धी करें। यह उक्थ(स्तोत्र) वचन और हमारी वाणी आपकी महत्ता बढाये॥८॥
 
४९. अक्षितोति: सनेदिमं वाजामिन्द्र: सहस्त्रिणम् । यस्मिन्ं विश्वानि पौंस्या॥९॥

रक्षणीय की सर्वथा रक्षा करने वाले इन्द्रदेव बल पराक्रम प्रदान करने वाले विविध रूपो मे विद्यमान सोम रूप अन्न का सेवन करे॥९॥
 
५०. मा नो मर्ता अभि द्रुहन् तनूमामिन्द्र गिर्वण:। ईशानो यवया वधम् ॥१०॥

हे स्तुत्य इन्द्रदेव! हमारे शरीर् को कोई भी शत्रु क्षति न पहुंचाये। हमे कोई भी हिंसित न करे, आप हमारे संरक्षक रहे॥१०॥

Share This Article:

Related Posts

0 comments

डाउनलोड "दयानंद वेदभाष्य खंडनं " Pdf Book

डाउनलोड "दयानंद आत्मचरित (एक अधूरा सच)" Pdf Book

.

Contact Us

Name

Email *

Message *