आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
एक मूर्ख को पूरी दुनिया मूर्ख ही दिखाई पड़ती है ( Maha Dhurt Dayanand )
✴✴ दयानंदभाष्य खंडनम् - ४ ✴✴
ये देखिए इस धूर्त को सत्यार्थ प्रकाश के अपने एकादश समुल्लास में ये बोलता है कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अब ज्ञान था या नहीं था मैं इस चक्कर में नहीं पडना चाहता।
परन्तु दुसरो का अपमान करने वाला , दुसरो को मुर्ख समझने वाला स्वयं कितना ज्ञानी है यह जानना जरूरी हो जाता है...
आइए देखते है स्वामी जी कितने समझदार मतलब ज्ञानी थे उन्हीं के शब्दों में पढ़िए
अ) सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में स्वामी जी कहते हैं कि
आसमान का जो ये नीला रंग है वो आसमान में उपस्थित पानी की वजह से है जो वर्षता है सो वो नीला दिखता है
वो बात अलग है कि स्वामी जी की बुद्धि यही तक काम करती थी उन्होंने ये भी नहीं सोचा कि अगर पानी की वजह से आसमान नीला दिखाता है तो फिर बादलों में तो लबालब पानी भरा होता है फिर वो काले सफेद क्यों होते हैं
वो बात अलग है कि स्वामी जी को ये भी नहीं मालूम था कि पानी स्वयं रंगहीन हैं वो दुसरे के रंग में क्या परिवर्तन करेगा
वो बात अलग है कि स्वामी जी को यह भी नहीं पता था कि आसमान का नीला रंग सूर्य से आने वाली प्रकाश का पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित गैसीय अणुओं से टकराने के कारण प्रकाश के परावर्तन के कारण दिखाई देता है
और यही प्रक्रिया समुद्र के जल के साथ होती है
ब) स्वामी जी की बुद्धि का एक नमूना और देखिए
स्वामी जी सत्यार्थ प्रकाश के अष्टम समुल्लास में लिखते हैं कि सूर्य, चन्द्रमा, तारे आदि जितने भी गोल पिण्ड, ग्रह आदि है उन सब पर मनुष्यआदि प्रजा रहती है
स्वामी जी को तो एक खगोलीय वैज्ञानिक होना चाहिए था क्या दिमाग पाया है सरकार बेकार में ही करोड़ों अरबों डॉलर सिर्फ ये जानने के लिए बेकार में खर्च कर देती है कि पडोसी ग्रह पर जीवन है कि नहीं ......
काश वैज्ञानिकों ने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ी होती तो उनके ना केवल करोड़ों अरबों डॉलर का धन बचता साथ ही कई वर्षों का समय भी बेकार के प्रयोग में नहीं खराब होता
कमाल है यार एक अज्ञानी दुसरे की समझ पर उंगली उठा रहा है अपनी गिरेबान में ना झांककर उल्टा अपने एकादश समुल्लास में कहते हैं कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अरे स्वामी जी तो यही बता दीजिए की आपको क्या ज्ञान था पहले अपने आपको ही देख लेते नानक जी का अपमान क्यों किया।
किसी ने सत्य ही कहा है एक मुर्ख को सारी दुनिया मुर्ख ही लगती है
ये देखिए इस धूर्त को सत्यार्थ प्रकाश के अपने एकादश समुल्लास में ये बोलता है कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अब ज्ञान था या नहीं था मैं इस चक्कर में नहीं पडना चाहता।
परन्तु दुसरो का अपमान करने वाला , दुसरो को मुर्ख समझने वाला स्वयं कितना ज्ञानी है यह जानना जरूरी हो जाता है...
आइए देखते है स्वामी जी कितने समझदार मतलब ज्ञानी थे उन्हीं के शब्दों में पढ़िए
अ) सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में स्वामी जी कहते हैं कि
आसमान का जो ये नीला रंग है वो आसमान में उपस्थित पानी की वजह से है जो वर्षता है सो वो नीला दिखता है
वो बात अलग है कि स्वामी जी की बुद्धि यही तक काम करती थी उन्होंने ये भी नहीं सोचा कि अगर पानी की वजह से आसमान नीला दिखाता है तो फिर बादलों में तो लबालब पानी भरा होता है फिर वो काले सफेद क्यों होते हैं
वो बात अलग है कि स्वामी जी को ये भी नहीं मालूम था कि पानी स्वयं रंगहीन हैं वो दुसरे के रंग में क्या परिवर्तन करेगा
वो बात अलग है कि स्वामी जी को यह भी नहीं पता था कि आसमान का नीला रंग सूर्य से आने वाली प्रकाश का पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित गैसीय अणुओं से टकराने के कारण प्रकाश के परावर्तन के कारण दिखाई देता है
और यही प्रक्रिया समुद्र के जल के साथ होती है
ब) स्वामी जी की बुद्धि का एक नमूना और देखिए
स्वामी जी सत्यार्थ प्रकाश के अष्टम समुल्लास में लिखते हैं कि सूर्य, चन्द्रमा, तारे आदि जितने भी गोल पिण्ड, ग्रह आदि है उन सब पर मनुष्यआदि प्रजा रहती है
स्वामी जी को तो एक खगोलीय वैज्ञानिक होना चाहिए था क्या दिमाग पाया है सरकार बेकार में ही करोड़ों अरबों डॉलर सिर्फ ये जानने के लिए बेकार में खर्च कर देती है कि पडोसी ग्रह पर जीवन है कि नहीं ......
काश वैज्ञानिकों ने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ी होती तो उनके ना केवल करोड़ों अरबों डॉलर का धन बचता साथ ही कई वर्षों का समय भी बेकार के प्रयोग में नहीं खराब होता
कमाल है यार एक अज्ञानी दुसरे की समझ पर उंगली उठा रहा है अपनी गिरेबान में ना झांककर उल्टा अपने एकादश समुल्लास में कहते हैं कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अरे स्वामी जी तो यही बता दीजिए की आपको क्या ज्ञान था पहले अपने आपको ही देख लेते नानक जी का अपमान क्यों किया।
किसी ने सत्य ही कहा है एक मुर्ख को सारी दुनिया मुर्ख ही लगती है
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