आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
सत्यार्थ प्रकाश के लेखक दयानंद चले डॉक्टर बनने ( Satyarth Prakash Ka Lekhak Bana Doctor )
सत्यार्थ प्रकाश के लेखक दयानंद चले डॉक्टर बनने ।
स्वामी जी कहने को तो ब्रह्मचारी थे पर थे बड़े रंगीले टाइप के औरतों से मजें लेने का एक मौका नहीं चूकते
कभी योनिसंकोचन के नाम पर बेचारी मासूम औरतों का चुतिया काटते तो कभी स्तन के छिद्र पर औषधि लेप
कैसे करें घंटा नही बताया
और बताते भी कैसे जब स्वयं ही नहीं जानते थे की क्या अंड संड बके जा रहा है
और गर्भाधान की तो बात ही क्या कहना उसे पढकर तो अंतर्रासवासन लिखने वाले भी डूब मरे ।
खेर ये सब बातें बाद की है पहले प्रश्न पर आते हैं
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सत्यार्थ प्रकाश द्वितिय सम्मुलास :
प्रसूता स्त्री बच्चे को दूध न पिलावे। दूध रोकने के लिये स्तन के छिद्र पर उस ओषधी का लेप करे जिससे दूध स्रवित न हो। ऐसे करने से दूसरे महीने में पुनरपि युवती हो जाती है।
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समीक्षा : वाह रे कलयुगी स्वामी वाह औरतों के फिगर का बड़ा ख्याल है आपको , औरत का फिगर खराब नहीं हो, चाहे बच्चा भाड में जाए । नवजात शिशु के लिए माँ का दूध कितना जरूरी है ये वही समझ सकता है जिसकी माँ ने उसे दूध पिलाया हो और जिसकी माँ ने अपने फिगर को देखते हुए डब्बे का दूध पिलाया हो वो तो इसे व्यर्थ ही समझेगा
और तो और अपने उस औषधि का नाम भी नहीं बताया जिसके लेप से दूध का स्त्राव रूक जाए
खेर बताते भी कैसे बताने के लिए पता भी तो होना चाहिए गपोडियों का काम होता है सिर्फ मुहँ फडना ।
अब आइए दयानंद के इस ज्ञान विज्ञान पर चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों का दृष्टिकोण क्या है एक नजर उसे भी देख लेते हैं
विशेषज्ञों के अनुसार -
१• जन्म के आधे घंटे के अंदर बच्चे को अपना दूध पिलाये :
माँ का पहला दूध गाढ़ा और पीले रंग का होता है, जिसे 'खिरसा' कहते हैं। यह खिरसा नवजात शिशु का पहला टीका है जो अनेक संक्रामक रोगों से बचाता है।
प्रसूता स्त्री का दूध बच्चे के लिय अमृत तुल्य है, प्रकृति स्वतः ही यह अमृत निर्माण करती है ,
यदि इसे रोका जाये तो स्तन में गांठे पड़ जाती हैं जो की अत्यधिक पीड़ादायक होती हैं और आगे चलकर स्तन कैंसर का भी कारण बन सकती हैं
२• सिर्फ स्तनपान :
पहले छः माह तक मॉ के दूध के अलावे बच्चे को ना तो कुछ खिलाए और ना ही पिलाए इसका अर्थ यह है कि बच्चे को पानी, पानी मिश्री, पानी ग्लूकोज, दूसरा कोई आहार आदि कोई चीज नहीं देना चाहिए। यह सब बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। डॉ0 की सलाह पर, जरूरत पडने पर, विटामिन या दवाई पिलाया जा सकता है।
३• गर्मी के मौसम में भी मॉ के दूध के अलावा पानी देना जरूरी नहीं है। पानी पिलाने से शिशुओं में दूध पीने की इच्छा कम हो जाती है जबकि पानी बीमारी का जड़ भी हो सकता है। दूसरा कोई भी पेय पदार्थ सफल स्तनपान में बाधक बन जाता है। मगर छः माह तक सिर्फ स्तनपान कराते रहने से बच्चों के मस्तिष्क का संपूर्ण विकास होता रहता है जिससे बच्चा तेज बृद्धि वाला हो जाता है।
इससे बच्चों मे छुआछुत रोग, दमा, एक्जिमा एवं अन्य एलर्जी रोग होने की संभावना की कम होती है।
और दयानंद क्या लिखता है - प्रसूता स्त्री बच्चे को दूध न पिलावे। दूध रोकने के लिये स्तन के छिद्र पर उस ओषधी का लेप करे जिससे दूध स्रवित न हो।
स्वामी जी अब आपकी माता जी ने आपको दुध नही पिलाया तो इसका मतलब कोई भी अपने बच्चे को दूध ही ना पिलावे ।
काश अपने डब्बे के दूध कि जगह माँ का दूध पिया होता तो ऐसे बिना सर पैर कि बात न करतें ।
मैने तो ये भी सुना है कि प्रसूता स्त्री के स्तन मे यदि दूध स्त्रावित ना हो या मात्रा अधिक हो जाती है
तो काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है स्त्री को
फिर आज के डॉक्टर्स भी यही सलाह देते है कि पीड़ा दूध के अत्यधिक दबाव की वजह से है ।
तो ऐसे मे दयानंद का दूध स्त्रावित ना होने देने से क्या तातपर्य है ??
स्वामी जी कहने को तो ब्रह्मचारी थे पर थे बड़े रंगीले टाइप के औरतों से मजें लेने का एक मौका नहीं चूकते
कभी योनिसंकोचन के नाम पर बेचारी मासूम औरतों का चुतिया काटते तो कभी स्तन के छिद्र पर औषधि लेप
कैसे करें घंटा नही बताया
और बताते भी कैसे जब स्वयं ही नहीं जानते थे की क्या अंड संड बके जा रहा है
और गर्भाधान की तो बात ही क्या कहना उसे पढकर तो अंतर्रासवासन लिखने वाले भी डूब मरे ।
खेर ये सब बातें बाद की है पहले प्रश्न पर आते हैं
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सत्यार्थ प्रकाश द्वितिय सम्मुलास :
प्रसूता स्त्री बच्चे को दूध न पिलावे। दूध रोकने के लिये स्तन के छिद्र पर उस ओषधी का लेप करे जिससे दूध स्रवित न हो। ऐसे करने से दूसरे महीने में पुनरपि युवती हो जाती है।
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समीक्षा : वाह रे कलयुगी स्वामी वाह औरतों के फिगर का बड़ा ख्याल है आपको , औरत का फिगर खराब नहीं हो, चाहे बच्चा भाड में जाए । नवजात शिशु के लिए माँ का दूध कितना जरूरी है ये वही समझ सकता है जिसकी माँ ने उसे दूध पिलाया हो और जिसकी माँ ने अपने फिगर को देखते हुए डब्बे का दूध पिलाया हो वो तो इसे व्यर्थ ही समझेगा
और तो और अपने उस औषधि का नाम भी नहीं बताया जिसके लेप से दूध का स्त्राव रूक जाए
खेर बताते भी कैसे बताने के लिए पता भी तो होना चाहिए गपोडियों का काम होता है सिर्फ मुहँ फडना ।
अब आइए दयानंद के इस ज्ञान विज्ञान पर चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों का दृष्टिकोण क्या है एक नजर उसे भी देख लेते हैं
विशेषज्ञों के अनुसार -
१• जन्म के आधे घंटे के अंदर बच्चे को अपना दूध पिलाये :
माँ का पहला दूध गाढ़ा और पीले रंग का होता है, जिसे 'खिरसा' कहते हैं। यह खिरसा नवजात शिशु का पहला टीका है जो अनेक संक्रामक रोगों से बचाता है।
प्रसूता स्त्री का दूध बच्चे के लिय अमृत तुल्य है, प्रकृति स्वतः ही यह अमृत निर्माण करती है ,
यदि इसे रोका जाये तो स्तन में गांठे पड़ जाती हैं जो की अत्यधिक पीड़ादायक होती हैं और आगे चलकर स्तन कैंसर का भी कारण बन सकती हैं
२• सिर्फ स्तनपान :
पहले छः माह तक मॉ के दूध के अलावे बच्चे को ना तो कुछ खिलाए और ना ही पिलाए इसका अर्थ यह है कि बच्चे को पानी, पानी मिश्री, पानी ग्लूकोज, दूसरा कोई आहार आदि कोई चीज नहीं देना चाहिए। यह सब बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। डॉ0 की सलाह पर, जरूरत पडने पर, विटामिन या दवाई पिलाया जा सकता है।
३• गर्मी के मौसम में भी मॉ के दूध के अलावा पानी देना जरूरी नहीं है। पानी पिलाने से शिशुओं में दूध पीने की इच्छा कम हो जाती है जबकि पानी बीमारी का जड़ भी हो सकता है। दूसरा कोई भी पेय पदार्थ सफल स्तनपान में बाधक बन जाता है। मगर छः माह तक सिर्फ स्तनपान कराते रहने से बच्चों के मस्तिष्क का संपूर्ण विकास होता रहता है जिससे बच्चा तेज बृद्धि वाला हो जाता है।
इससे बच्चों मे छुआछुत रोग, दमा, एक्जिमा एवं अन्य एलर्जी रोग होने की संभावना की कम होती है।
और दयानंद क्या लिखता है - प्रसूता स्त्री बच्चे को दूध न पिलावे। दूध रोकने के लिये स्तन के छिद्र पर उस ओषधी का लेप करे जिससे दूध स्रवित न हो।
स्वामी जी अब आपकी माता जी ने आपको दुध नही पिलाया तो इसका मतलब कोई भी अपने बच्चे को दूध ही ना पिलावे ।
काश अपने डब्बे के दूध कि जगह माँ का दूध पिया होता तो ऐसे बिना सर पैर कि बात न करतें ।
मैने तो ये भी सुना है कि प्रसूता स्त्री के स्तन मे यदि दूध स्त्रावित ना हो या मात्रा अधिक हो जाती है
तो काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है स्त्री को
फिर आज के डॉक्टर्स भी यही सलाह देते है कि पीड़ा दूध के अत्यधिक दबाव की वजह से है ।
तो ऐसे मे दयानंद का दूध स्त्रावित ना होने देने से क्या तातपर्य है ??
5 comments
Chutiye poora padh leta ...
ReplyDeleteWo ayurved gyaan detail me aage diya hua h ...
20 din me us samay ... aisa kuch ni hota ... bauka he re tu :p
ऋषि दयानंद ने प्रसूता को दूध पिलाने का निषेध, केवल प्रारंभिक कुछ समय के लिए किया है, पूर्णतः आगे के समय के लिए नहीं, क्योंकि प्रारंभिक दिनों में प्रसूता संतान उत्पत्ति के कारण निर्बल होती है।
ReplyDeleteऋषि दयानंद ने प्रसूता को दूध पिलाने का निषेध, केवल प्रारंभिक कुछ समय के लिए किया है, पूर्णतः आगे के समय के लिए नहीं, क्योंकि प्रारंभिक दिनों में प्रसूता संतान उत्पत्ति के कारण निर्बल होती है।
ReplyDeleteपूर्णतः अज्ञानी हो तुम बाग़ी।
ReplyDeleteपूर्णतः अज्ञानी हो तुम बाग़ी।
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