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BHAGAVAD GITA SUMMARY in Hindi (गीता सार)

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    ● धन रहते हुए तो मनुष्य संत बन सकता है...पर धन की लालसा रहते हुए मनुष्य कभी संत नहीं बन सकता...



    ● जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है ,उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा व्यर्थ के शरीरो को त्यागकर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है ।

    ● प्रत्येक व्यक्ति इस भौतिक शरीर रुपी रथ पर आरूढ़ है और बुद्धि इसका सारथी है । मन लगाम है तथा इन्द्रियां घोड़े हैं । इस प्रकार मन तथा इन्द्रियों की संगती से यह आत्मा सुख या दुःख का भोक्ता है । संसार के सारे भौतिक कार्यकलाप प्रकृति के तीन गुणों के अधीन संपन्न होते है । यद्यपि प्रकृति के तीन गुण परमेश्वर कृष्ण से उद्भूत है ,फिर भी भगवान् कृष्ण उनके अधीन नहीं होते ।

    ● मैं समस्त आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतो का कारण हूँ ,प्रत्येक वस्तु मुझ ही से उद्भूत है । जो बुद्धिमान यह भलीभांति जानते हैं,वे मेरी प्रेमा भक्ति में लगते है तथा ह्रदय से पूरी तरह मेरी पूजा में तत्पर होते हैं । (१०.२ )

    ● विश्वरूप दर्शन कर मोहग्रस्त एवम आश्चर्यचकित रोमांचित हुए अर्जुन ने कहा-"हे विश्वेश्वर ,हे विश्वरूप !मैं आपके शरीर मैं अनेकानेक हाथ ,पेट,मुख तथा आँखे देख रहा हूँ ,जो सर्वत्र फैले हुए है और जिनका अंत नहीं है । आप में न अंत दीखता है,न मध्य और न आदि । " (११.१६ )

    ● सदैव मेरा चिंतन करो ,मेरे भक्त बनो,मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो । इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे। मैं तुम्हे वचन देता हु ,क्योंकि तुम मेरे परम प्रिय मित्र हो । (१८.६५ )

     
    ॥ जय श्री कृष्णा,कृष्णा कृष्णा हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥




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