दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
दयानंद के भंग की तंरग ( Dayanand Ke Bhang Ki Tarang )
दयानंद की पोप लीला
दयानंद जैसा धुर्त जो खुद की कही बात से पलट जाए पुरे विश्व में नहीं मिलेगा
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स ब्रह्मा स विष्णुः स रुद्रस्स शिवस्सोऽक्षरस्स परमः स्वराट्।...
स इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।।७।। -कैवल्य उपनिषत्।
भावर्थ : सब जगत् के बनाने से ‘ब्रह्मा’, सर्वत्र व्यापक होने से ‘विष्णु’, दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से ‘रुद्र’, मंगलमय और सब का कल्याणकर्त्ता होने से ‘शिव’,
जो सर्वत्र व्याप्त अविनाशी, स्वयं प्रकाशस्वरूप और प्रलय में सब का काल और काल का भी काल है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘कालाग्नि’ है।।७।।
प्रथम समुल्लास मे ही फिर आगे लिखा है कि-
इसलिए सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर ही की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करें, उससे भिन्न की कभी न करें। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नामक पूर्वज महाशय विद्वान्, दैत्य दानवादि निकृष्ट मनुष्य और अन्य साधारण मनुष्यों ने भी परमेश्वर ही में विश्वास करके उसी की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करी, उससे भिन्न की नहीं की। वैसे हम सब को करना योग्य है। { सत्यार्थ प्रकाश- प्रथम समुल्लास }
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समीक्षा : वाह रे गवरगण्ड दयानंद स्वयं ही प्रमाण के साथ ब्रह्मा, विष्णु, शिव को ईश्वर बतलाते हो और थोड़ा
आगे बढ़े नही की अपनी धूर्तता दिखाते हुए उनको पूर्वज विद्वान आदि बताने लगें । इसमें कोई प्रमाण तो दिया होता कि यह मनुष्य थे, और अगर प्रमाण नही मिला था तो कोई उल्टि सिधि संस्कृत ही गढ़ ली होती आपके नियोगी चम्चे आपके उस गपोडे को भी पत्थर कि लकिर समझ लेते ।
वैसे ये आपके जैसे धुर्त को ही शोभा देता है कि ब्रह्मादिक नाम ईश्वर के बताकर फिर उन्हे पूर्वज बता दिया,
और तो और ये अर्थ भी आपका गलत ही है सही अर्थ इस प्रकार है कि वो ब्रह्मारूप होकर जगत की रचना करता, विष्णु रूप हो पालन करता रूद्ररूप हो दुष्टों को कर्मफल भुगाकर रूलाता शिव ही मंगल करता है वो ही स्वराट इन्द्र चन्द्रमा है। और कालाग्निरूप धारण कर प्रलय करता है
यह सब देवता उसी के रूप है नहीं तो अपने बताया क्यो नही की यह तीनों किसके पुत्र थे
जो कहते की स्वयं उत्पन्न हो गए तो आपका सृष्टि क्रम जाता है कि माता पिता के बिना कोई मनुष्य उत्पन्न नहीं होता
यही तो आपकी भंग की तंरग है जो जीवन चरित्र में लिखा है कि मुझे भंग पीने की ऐसी आदत थी कि दुसरे दिन ही होश आता था
दयानंद जैसा धुर्त जो खुद की कही बात से पलट जाए पुरे विश्व में नहीं मिलेगा
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स ब्रह्मा स विष्णुः स रुद्रस्स शिवस्सोऽक्षरस्स परमः स्वराट्।...
स इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।।७।। -कैवल्य उपनिषत्।
भावर्थ : सब जगत् के बनाने से ‘ब्रह्मा’, सर्वत्र व्यापक होने से ‘विष्णु’, दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से ‘रुद्र’, मंगलमय और सब का कल्याणकर्त्ता होने से ‘शिव’,
जो सर्वत्र व्याप्त अविनाशी, स्वयं प्रकाशस्वरूप और प्रलय में सब का काल और काल का भी काल है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘कालाग्नि’ है।।७।।
प्रथम समुल्लास मे ही फिर आगे लिखा है कि-
इसलिए सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर ही की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करें, उससे भिन्न की कभी न करें। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नामक पूर्वज महाशय विद्वान्, दैत्य दानवादि निकृष्ट मनुष्य और अन्य साधारण मनुष्यों ने भी परमेश्वर ही में विश्वास करके उसी की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करी, उससे भिन्न की नहीं की। वैसे हम सब को करना योग्य है। { सत्यार्थ प्रकाश- प्रथम समुल्लास }
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समीक्षा : वाह रे गवरगण्ड दयानंद स्वयं ही प्रमाण के साथ ब्रह्मा, विष्णु, शिव को ईश्वर बतलाते हो और थोड़ा
आगे बढ़े नही की अपनी धूर्तता दिखाते हुए उनको पूर्वज विद्वान आदि बताने लगें । इसमें कोई प्रमाण तो दिया होता कि यह मनुष्य थे, और अगर प्रमाण नही मिला था तो कोई उल्टि सिधि संस्कृत ही गढ़ ली होती आपके नियोगी चम्चे आपके उस गपोडे को भी पत्थर कि लकिर समझ लेते ।
वैसे ये आपके जैसे धुर्त को ही शोभा देता है कि ब्रह्मादिक नाम ईश्वर के बताकर फिर उन्हे पूर्वज बता दिया,
और तो और ये अर्थ भी आपका गलत ही है सही अर्थ इस प्रकार है कि वो ब्रह्मारूप होकर जगत की रचना करता, विष्णु रूप हो पालन करता रूद्ररूप हो दुष्टों को कर्मफल भुगाकर रूलाता शिव ही मंगल करता है वो ही स्वराट इन्द्र चन्द्रमा है। और कालाग्निरूप धारण कर प्रलय करता है
यह सब देवता उसी के रूप है नहीं तो अपने बताया क्यो नही की यह तीनों किसके पुत्र थे
जो कहते की स्वयं उत्पन्न हो गए तो आपका सृष्टि क्रम जाता है कि माता पिता के बिना कोई मनुष्य उत्पन्न नहीं होता
यही तो आपकी भंग की तंरग है जो जीवन चरित्र में लिखा है कि मुझे भंग पीने की ऐसी आदत थी कि दुसरे दिन ही होश आता था
6 comments
Bhai tum chutiya h
ReplyDeleteRishi ne jo likha h , wo tumko samajh ni aayega ...
Brahma vishnu mahesh unke gun ke kaaran naam hai ...
Saare naam ek hi nirakar parmatma ke hai .... wahi likha hua h ....
Waise ved me bahut pramaan h ..
Par mujhe ek ka ref yaad h
Rigved 1:164:46
Bhai tum chutiya h
ReplyDeleteRishi ne jo likha h , wo tumko samajh ni aayega ...
Brahma vishnu mahesh unke gun ke kaaran naam hai ...
Saare naam ek hi nirakar parmatma ke hai .... wahi likha hua h ....
Waise ved me bahut pramaan h ..
Par mujhe ek ka ref yaad h
Rigved 1:164:46
प्रथम समुल्लास में दिए गए ईश्वर के ब्रह्मा विष्णु और रुद्र आदि नाम ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव के अनुसार हैं और आगे के समुल्लास में जो ब्रहमा आदि का उन्होंने उल्लेख किया है वह ऋषियों के लिए किया है न की परमात्मा के लिए। किसी बात को कहने से पहले, नेत्र खोल कर पढ़ लेना उचित है। जिस ऋषि दयानंद की तू असत्य निंदा कर रहा है, उसके सामने तू घास के तिनके के तुल्य भी नहीं। यदि साहस हो तो सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ कर, फिर देख तेरी कैसी धज्जियां उड़ती हैं।
ReplyDeleteमनुस्मृति को ठीक से पढ़ लेना, उसमें तुम्हें ब्रह्मा आदि ऋषियों का प्रमाण मिल जाएगा। ऋषि दयानंद के लिए गवरगण्ड जैसे शब्दों का प्रयोग बंद कर दें, नहीं तो भविष्य में तेरे साथ दुखद परिणाम होने वाले हैं।
ReplyDeleteलेखक किसी मुस्लिम मोहल्ले के कटी हुई चमड़ी की पैदाइश लगता है।
ReplyDeleteसुवर हिम्मत है तो जवाब दे।
Arya Samajis want to save Hindus by making then Abrahamic Hindus which will destroy the diversity of our Tradition. Arya Samajis are Anti-Hindus.
ReplyDeleteGood work...