Rigved
ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त २९
[ऋषि- शुन:शेप आजीगर्ति। देवता इन्द्र।छन्द पंक्ति।]
३२२.यच्चिद्धि सत्य सोमपा अनाशस्ता इव स्मसि। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥१॥
हे सत्य स्वरूप सोमपायी इन्द्रदेव! यद्यपि हम प्रशंसा के पात्र तो नही है, तथापि हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥१॥
३२३.शिप्रिन्वाजानां पते शचीवस्तव दंसना। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥२॥
हे इन्द्रदेव ! आप शक्तिशाली, शिरस्त्राण धारण करने वाले, बलो के अधीश्वर और ऐश्वर्यशाली है। आपका सदैव हम पर अनुग्रह बना रहे। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥२॥
३२४.नि ष्वापया मिथूदृशा सस्तामबुध्यमाने। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥३॥
हे इन्द्रदेव! दोनो दुर्गतियाँ (विपत्ति और दरिद्रता) परस्पर एक दूसरे को देखती हुई सो जायें। वे कभी न जागें, वे अचेत पड़ी रहें।हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥३॥
३२५.ससन्तु त्या अरातयो बोधन्तु शूर रातयः। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥४॥
हे इन्द्रदेव! हमारे शत्रु सोते रहें और हमारे विर मित्र जागते रहे। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥४॥
३२६.समिन्द्र गर्दभं मृण नुवन्तं पापयामुया। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥५॥
हे इन्द्रदेव ! कपटपूर्ण वाणी बोलनेवाले शत्रु रूप गधे को मार डालें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥५॥
३२७.पताति कुण्डृणाच्या दूरं वातो वनादधि। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ॥६॥
हे इन्द्रदेव ! विध्वंशकारी बवंडर वनो से दूर जाकर गिरें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥६॥
३२८.सर्वं परिक्रोशं जहि जम्भया कृकदाश्वम्। आ तू न इन्द्र शंसय गोष्वश्वेषु शुभ्रिषु सहस्रेषु तुवीमघ ॥७॥
हे इन्द्रदेव ! हम पर आक्रोश करने वाले सब शत्रुओ को विनष्ट करें। हिंसको का नाश करें। हे ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव ! हमे सहस्त्रो श्रेष्ठ गौंएँ और घोड़े प्रदान करके संपन्न बनायें॥ ७॥
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