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15:08 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Commentsवेद क्या हैं? - संशिप्त परिचय
वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं! वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं! सामान्य भाषा में वेद का अर्थ है "ज्ञान" ! वस्तुत: ज्ञान वह प्रकाश है जो मनुष्य-मन के अज्ञान-रूपी अन्धकार को नष्ट कर देता है ! वेदों को इतिहास का ऐसा स्रोत कहा गया है जो पोराणिक ज्ञान-विज्ञानं का अथाह भंडार है ! वेद शब्द संस्कृत के विद शब्द से निर्मित है अर्थात इस एक मात्र शब्द में ही सभी प्रकार का ज्ञान समाहित है ! प्राचीन भारतीय ऋषि जिन्हें मंत्रद्रिष्ट कहा गया है, उन्हें मंत्रो के गूढ़ रहस्यों को ज्ञान कर, समझ कर, मनन कर उनकी अनुभूति कर उस ज्ञान को जिन ग्रंथो में संकलित कर संसार के समक्ष प्रस्तुत किया वो प्राचीन ग्रन्थ "वेद" कहलाये ! एक ऐसी भी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था! इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है ।
इस जगत, इस जीवन एवं परमपिता परमेशवर; इन सभी का वास्तविक ज्ञान "वेद" है!
वेद क्या हैं?
वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रन्थ हैं, जिनमे ज्योतिष, गणित, विज्ञानं, धर्म, ओषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से सम्बंधित ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है ! वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं ! इनमे अनिष्ट से सम्बंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उसे प्राप्त करने के उपाय संग्रहीत हैं ! लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में महनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्न रूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्यन करके ही इनमे संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है !
वेद मंत्रो का संकलन और वेदों की संख्या
ऐसी मान्यता है की वेद प्रारंभ में एक ही था और उसे पढने के लिए सुविधानुसार चार भागो में विभग्त कर दिया गया ! ऐसा श्रीमदभागवत में उल्लेखित एक श्लोक द्वारा ही स्पष्ट होता है ! इन वेदों में हजारों मन्त्र और रचनाएँ हैं जो एक ही समय में संभवत: नहीं रची गयी होंगी और न ही एक ऋषि द्वारा ! इनकी रचना समय-समय पर ऋषियों द्वारा होती रही और वे एकत्रित होते गए !
शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु और सूर्य ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया !
प्रथम तीन वेदों को अग्नि, वायु और सूर्य से जोड़ा गया है ! इन तीनो नामों के ऋषियों से इनका सम्बन्ध बताया गया है, क्योंकि इसका कारण यह है की अग्नि उस अंधकार को समाप्त करती है जो अज्ञान का अँधेरा है ! इस कारण यह ज्ञान का प्रतीक मन गया है ! वायु प्राय: चलायमान है ! उसका कम चलना (बहना) है ! इसका तात्पर्य है की कर्म अथवा कार्य करते रहना ! इसलिए यह कर्म से सम्बंधित है ! सूर्य सबसे तेजयुक्त है जिसे सभी प्रणाम करते हैं ! नतमस्तक होकर उसे पूजते हैं ! इसलिए कहा गया है की वह पूजनीय अर्थात उपासना के योग्य है ! एक ग्रन्थ के अनुसार ब्रम्हाजी के चार मुखो से चारो वेदों की उत्पत्ति हुई !
☛ ऋग्वेद (Rigveda Samhita)
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है। इसमें धरती की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र हैं। इस वेद में १०२८ सुक्त जिनमें कुल १०,६०० ऋचाएँ है तथा १० मंडल (अध्याय) हैं। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।
☛ यजुर्वेद (Yajurved Samhita)
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। इस वेद की दो शाखाएँ हैं शुक्ल और कृष्ण। ४० अध्यायों में १९७५ मंत्र हैं।
☛ सामवेद (Samved Samhita)
साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं (मंत्रों) का संगीतमय रूप है। इसमें मूलत: संगीत की उपासना है। इसमें १८७५ मंत्र हैं
इस वेद में रहस्यमय विद्याओं के मंत्र हैं, जैसे जादू, चमत्कार, आयुर्वेद आदि। यह वेद सबसे बड़ा है, इसमें २० अध्यायों में ५६८७ मंत्र हैं।
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15:07 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Commentsवेद
☛ ऋग्वेद (Rigveda Samhita)
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है। इसमें धरती की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र हैं। इस वेद में १०२८ सुक्त है जिनमें कुल १०,६०० ऋचाएँ और १० मंडल हैं ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।
☛ यजुर्वेद (Yajurved Samhita)
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। इस वेद की दो शाखाएँ हैं शुक्ल और कृष्ण। 40 अध्यायों में 1975 मंत्र हैं।
☛ सामवेद (Samved Samhita)
साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं (मंत्रों) का संगीतमय रूप है। इसमें मूलत: संगीत की उपासना है। इसमें 1875 मंत्र हैं
इस वेद में रहस्यमय विद्याओं के मंत्र हैं, जैसे जादू, चमत्कार, आयुर्वेद आदि। यह वेद सबसे बड़ा है, इसमें 20 अध्यायों में 5687 मंत्र हैं।
अथर्ववेद भाग- १
अथर्ववेद भाग- २
आर्य समाज खंडन पुस्तकें
☛ दयानंद तिमिर भास्कर
☛ दयानंद के मूल सिद्धांत
☛ दयानंद के यजुर्वेद भाष्य का खंडन
☛ दयानंद की बुद्धि
☛ दयानंद मत दर्पण
☛ दयानंद विद्धता
☛ दयानंद का कच्चा चिट्ठा
☛ दयानंद लीला
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब
आर्य का मतलब होता है श्रेष्ठ
19:43 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
कुछ लोग खुद को इसलिए आर्य कहते है क्योंकि इस देश का नाम कभी आर्यव्रत होता था
रामायण महाभारत मे भी आर्य का सम्बोधन आया है ।।
मगर क्या ये संबोधन क्या किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए था ??
या उस वक़्त के लोग खुद को आर्य ( श्रेष्ठ ) कहते थे ??
जवाब है नही बिल्कुल नही
उस वक़्त भी दुसरो के द्वारा भी “आर्यपुत्र” “आर्यमाता” “आर्यपत्नी” का संबोधन मिलता है
एक भी ऐसा उदाहरण नही है जिसमे किसी ने खुद को आर्य कहा हो ।।
कहते भी तो कैसे ??
उस वक़्त के लोग इतने मूर्ख नही थे ।।
आज के कुछ आर्य समाजी अपने नाम के साथ “आर्य” जोड़कर चलते है
मतलव खुद को श्रेष्ठ बताते है ।।
एक ने कल कहा भी “हा मैं आर्य हु क्या आप नही हो ??
मैंने कहा जी मैं आर्य नही हु ।
रामायण महाभारत मे भी आर्य का सम्बोधन आया है ।।
मगर क्या ये संबोधन क्या किसी भी व्यक्ति विशेष के लिए था ??
या उस वक़्त के लोग खुद को आर्य ( श्रेष्ठ ) कहते थे ??
जवाब है नही बिल्कुल नही
उस वक़्त भी दुसरो के द्वारा भी “आर्यपुत्र” “आर्यमाता” “आर्यपत्नी” का संबोधन मिलता है
एक भी ऐसा उदाहरण नही है जिसमे किसी ने खुद को आर्य कहा हो ।।
कहते भी तो कैसे ??
उस वक़्त के लोग इतने मूर्ख नही थे ।।
आज के कुछ आर्य समाजी अपने नाम के साथ “आर्य” जोड़कर चलते है
मतलव खुद को श्रेष्ठ बताते है ।।
एक ने कल कहा भी “हा मैं आर्य हु क्या आप नही हो ??
मैंने कहा जी मैं आर्य नही हु ।
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब
क्या चाणक्य मूर्तिपूजा विरोधी थे ? ( Arya Samaj Mat Khandan )
19:39 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Commentsआर्य समाजी इस पोस्ट का खंडन करके दिखाए !
आर्य समाजी हमेशा यह तर्क देते है कि महान आचार्य_चाणक्य मूर्तिपूजा विरोधी थे,लेकिन अपने पंथ को चलाए रखने के लिए ये इसी तरह के कई कुतर्क करते रहते है जो बिल्कुल निराधार साबित होते आए है-
प्रश्न- चाणक्य मूर्तिपूजा विरोधी थे ?
समीक्षा- चाणक्य मूर्तिपूजा विरोधी नही थे,क्योंकि उनकी अमर कृति चाणक्य_नीति में कई श्लोक ऐसे है जो आर्य समाजियो के इस कुतर्क को निराधार साबित करते है-
“काष्ठपाषाणधातूनां कृत्वा भावेन सेवनम् !
श्रद्धया च तया सिद्धस्तस्य विष्णु: प्रसीदति !!”
चा.नी.-८/११
भावार्थ- लकड़ी,पत्थर अथवा धातु की मूर्ति में प्रभु की भावना और श्रद्धा उसकी पूजा की जाएगी तो सिद्धी अवश्य प्राप्त होती है ! प्रभु इस भक्त पर अवश्य प्रसन्न होतें है !
यदि चाणक्य ये श्लोक अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में लिख सकते है तो इससे साफ हो जाता है कि मूर्तिपूजा से कोई हानि नही अथवा लाभ है ! लेकिन पुराण के अनुसार चाणक्य भी ये ही कहते है कि मूर्ति में भगवान नही बल्कि ध्यान केंद्रित करने का एक रास्ता है !इसी को समझाते हुए चाणक्य अपने अगले श्लोक में बोलते है-
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्
दयानंद की मक्कारी ( Dayanand Ki Makkari )
18:59 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 9 Commentsदयानंद की मक्कारी किसी से छुपी नहीं है दयानंद ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए पवित्र वेदो को भी नहीं छोड़ा अपनी गंदी सोच वेदों में भी डालने का प्रयास किया ।
दयानंद सत्यार्थ प्रकाश चतुर्थ सम्मुलास में लिखते है
इमां त्वमिन्द्र मीढ्वः सुपुत्रां सुभगां कृणु।
दशास्यां पुत्राना धेहि पतिमेकादशं कृधि।(ऋग्वेद 10-85-45)
भावार्थ : ‘‘हे वीर्य सेचन हार ‘शक्तिशाली वर! तू इस विवाहित स्त्री या विधवा स्त्रियों को श्रेष्ठ पुत्र और सौभाग्य युक्त कर। इस विवाहित स्त्री से दस पुत्र उत्पन्न कर और ग्यारहवीं स्त्री को मान। हे स्त्री! तू भी विवाहित पुरुष या नियुक्त पुरुषों से दस संतान उत्पन्न कर और ग्यारहवें पति को समझ।’’
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब
आर्य समाज का वैदिक ढोंग ( Arya Samaj Ka Vedic Dhong )
17:58 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 3 Commentsआज आर्य समाज ये कहते हुए नही थकता की हम वैदिक है ।
हमारा आचरण वैदिक है
आइये एक नजर डालते है
इनके वैदिक कारनामो पर ।
हम सब जानते है की आर्य मंदिर मे प्रेमी जोड़े की शादिया आर्य समाज करवाता है ।
बहुत अच्छी बात है ये सम्मान के काबिल है उनका ये कदम ।
बहुत सी शादिया आर्य समाजियों ने हिन्दू - मुस्लिम की भी करवाई है
और उनको आर्य समाज से जोड़ा है ।
बहुत अच्छा कर्म है ये आज की दृष्टिकोण से ।।
ऐसा करने से आर्य समाजियों को अपने फोल्लोवर्स बढ़ाने मे काफी मदद मिलती है
क्योंकि जब उन प्रेमी जोड़े की कोई नही सुनता तब उनकी आर्य समाज सुनता है
ऐसे मे प्रेमी जोड़े तन मन धन से आर्य समाज से अटूट श्रद्धा और विस्वास कर लेते है ।।
मगर क्या उनका ये तरीका वैदिक है ??
मेरे मन मे ये ख्याल आया तब जब उन्होंने 2-3बार विवाह की फोटो अपलोड की और कहा की आर्य समाज ने वैदिक तरीके से शादी करवाई ।
मेरा मन व्याकुल हो गया की प्रश्न उठा की क्या ऐसी शादिया वेद सम्मत है ??
अगर नही तो फिर वैदिक तरीके से विवाह करवाने का क्या औचित्य ??
जी हा ऐसे विवाह वेद सम्मत नही है ।।
जब लड़का लड़की स्वयं एक दूसरे को पसंद करके विवाह बंधन मे बंध जाते है तो ऐसे विवाह को गांधर्व विवाह बताया गया है
जिसका वर्णन कुछ इस प्रकार है
इच्छयाSन्योसंयोग:कन्यायाश्चवरस्य च ।
गान्धर्व: स तु विज्ञेयो मैथुन्य: कमसम्भव: ।।
अर्थात - कन्या और वर का अपनी इच्छा से एक दूसरे को पसंद करके विवाह- बंधन मे बंध जाना 'गांधर्व विवाह' कहलाता है । इस प्रकार का विवाह कामजन्य वासना की तृप्ति पर आधृत होता है ।
हत्वा छित्वा च भित्वा क्रोशंतीं रुदंतीं गृहात् ।
प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिरुच्यते ।।
अर्थात- कन्या के अभिभावक का वध करके अथवा उसके हाथ पाव आदि पर चोट मार करके अथवा उनके मकान को तोड़ फोड़ करके रोती हुई कन्या को बलपूर्वक छीनकर अपने अधिकार मे करना "राक्षस विवाह"कहलाता है ।
इतरेशु तु शिष्टेषु नृशन्सानृतवादिन: ।
जायन्ते दुर्विवाहेषु ब्रह्मधर्मद्विष: सुता: ।।
असुर और गांधर्व विवाह से उतपन्न होने वाले पुत्र क्रूर , मिथ्याभाषी , ब्राह्मणों के विरोधी , तथा धर्म से द्वेष करने वाले निर्लज्ज प्रकृति के होते है ।
तो अब मेरा सवाल ये है की क्या आर्य समाज द्वारा करावाया गया ये विवाह धर्म सम्मत है ??
नही क्योंकि गन्धर्व और असुर विवाह क्षत्रियो के धर्म सम्मत बताये गए है उसपे भी आगे पाबंदी है
लिखा हुआ है ।
अनीन्दितै: स्त्रीविवाहैरनिन्ध्या भवति प्रजा ।
निन्दितैर्निन्दिता: नृणां तस्मान्निन्द्यान्विर्वजयेत् ।।
आनंदित ( श्रेष्ठ ) विवाह ( ब्रह्म , देव , आर्ष , प्रजापत्य ) से उत्पन्न होने वाली संतान श्रेष्ठ होती है और इसके विपरीत निकृष्ट एवं निन्दित विवाह से उतपन्न होने वाली संतान निकृष्ट और ओछी होती है ।
अत: श्रेष्ठ संतान के इछुक लोगो को निकृष्ट प्रकर्ति के विवाहो का त्याग करना चाहिए ।।
अब बताये क्या आर्य समाज वैदिक विवाह करवाता है ???
जब वो हिन्दू मुस्लिम की शादी करवाता है तब कहा जाते है इनके वेद ??
दुनिया जानती है इस्लाम राक्षस प्रवर्ति का धर्म है ।
फिर एक राक्षस जाती से मानव जाती का विवाह क्या समाज को उत्तम बनाएगा ??
( वेदों के हिसाब से कभी नही बनाएगा । हा किसी नीति के तहत हो तो बात अलग है जैसे घटोतकच का इस्तेमाल महाभारत मे हुआ था)
क्या है ये वैदिक ???
नही है कदापि नही है ।।
इसलिए आर्य समाज ये वैदिक वैदिक का ढोंग करना बंद कर दे
वेद का प्रचार करना है तो सही से करे अन्यथा समाज को भ्रमित बिल्कुल भी मत करे ।।
हिन्दुओ ये तुम्हारी संस्कृति को नष्ट कर देंगे तुम्हारी छाती पर चढ़कर
अभी वक़्त है समझ लो ।।
आर्य समाज सिर्फ अपना विस्तार कर रहा है
इसमे हिन्दू हितैसी जैसी कोई बात नही है ।।
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्
असत्यवादी महाधूर्त दयानंद ( Astaywadi Mahadhurt Dayananad )
17:40 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
सत्यार्थ प्रकाश प्रथम समुल्लास मंगलचरण न करने का खंडन
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(प्रश्न) जैसे अन्य ग्रन्थकार लोग आदि, मध्य और अन्त में मंगलाचरण करते हैं वैसे आपने कुछ भी न लिखा, न किया?
...
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(प्रश्न) जैसे अन्य ग्रन्थकार लोग आदि, मध्य और अन्त में मंगलाचरण करते हैं वैसे आपने कुछ भी न लिखा, न किया?
...
(उत्तर) ऐसा हम को करना योग्य नहीं। क्योंकि जो आदि, मध्य और अन्त में मंगल करेगा तो उसके ग्रन्थ में आदि मध्य तथा अन्त के बीच में जो कुछ लेख होगा वह अमंगल ही रहेगा। इसलिए ‘मंगलाचरणं शिष्टाचारात् फलदर्शनाच्छ्रुतितश्चेति ।’ यह सांख्यशास्त्र का वचन है।
इस का यह अभिप्राय है कि जो न्याय, पक्षपातरहित, सत्य, वेदोक्त ईश्वर की आज्ञा है, उसी का यथावत् सर्वत्र और सदा आचरण करना मंगलाचरण कहाता है। ग्रन्थ के आरम्भ से ले के समाप्तिपर्यन्त सत्याचार का करना ही मंगलाचरण है, न कि कहीं मंगल और कहीं अमंगल लिखना।
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इस का यह अभिप्राय है कि जो न्याय, पक्षपातरहित, सत्य, वेदोक्त ईश्वर की आज्ञा है, उसी का यथावत् सर्वत्र और सदा आचरण करना मंगलाचरण कहाता है। ग्रन्थ के आरम्भ से ले के समाप्तिपर्यन्त सत्याचार का करना ही मंगलाचरण है, न कि कहीं मंगल और कहीं अमंगल लिखना।
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आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
सनातन धर्म के दीमक- आर्य समाज ( Sanatan Dharm Ka Dimak Arya Samaj )
12:58 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 4 Commentsसाथियो, आप सभी को एक बात बताना चाहता हूँ की पिछले १५० -२०० वर्षो में सनातन धर्म को तोड़ने में जितना योगदान “आर्य
समाज” का रहा उतना किसी और का नहीं रहा ।
ये लोग खुद को वैदिक धर्म के रक्षक और प्रचारक कहते है मै आज इनसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ –
१. आप खुद को वैदिक कहते हो और वेदो की शाखा पुराणो का विरोध करते हो क्यों ?
२. आपको कैसे पता की पुराणो में लिखी सभी बाते हमारे ऋषि मुनिओ ने ही लिखी है उनमे किसी प्रकार की कोई मिलावट नहीं हुई थी ?
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब
क्या क्रांतिकारी आर्यसमाज से थे ? ( Arya Samaji Gapoda )
12:36 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
आर्यसमाजी गपोड़ा :
आर्यसमाजी अक्सर एक गप्प मारते हैं कि – स्वतन्त्रता आंदोलन के 80 प्रतिशत क्रांतिकारी , आर्यसमाजी थे । इनके लेखो व पत्रिकाओ मे भी ये बात देखने में आती हैं। जिनमे कि गप्प और झूठ लिख लिखकर ये स्वयं का इतना महिमामंडन करते हैं कि लगता है जैसे इस राष्ट्र के लिए व धर्म के लिए केवल और केवल आर्यसमाज ने ही कार्य किए हैं , इन्हौने ही बलिदान दिये हैं। आर्यसमाज के ही लोगो द्वारा लिखे गए झूठ से भरे पुलिंदे ही इनके लिए इतिहास का प्रमाण होते हैं। इतना और इस तरह से महिमामंडन कि युवा आर्यसमाजी तो इतने सनकी हो जाते है कि उनके दिमाग मे यह भर जाता हैं कि -स्वतन्त्रता आंदोलन में “भी” सबसे बड़ा योगदान इन्ही का था । अब इनके इस दावे की वास्तविकता देखिये —
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
दयानंद के भंग की तंरग ( Dayanand Ke Bhang Ki Tarang )
12:12 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 6 Comments
दयानंद की पोप लीला
दयानंद जैसा धुर्त जो खुद की कही बात से पलट जाए पुरे विश्व में नहीं मिलेगा
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स ब्रह्मा स विष्णुः स रुद्रस्स शिवस्सोऽक्षरस्स परमः स्वराट्।...
स इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।।७।। -कैवल्य उपनिषत्।
भावर्थ : सब जगत् के बनाने से ‘ब्रह्मा’, सर्वत्र व्यापक होने से ‘विष्णु’, दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से ‘रुद्र’, मंगलमय और सब का कल्याणकर्त्ता होने से ‘शिव’,
जो सर्वत्र व्याप्त अविनाशी, स्वयं प्रकाशस्वरूप और प्रलय में सब का काल और काल का भी काल है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘कालाग्नि’ है।।७।।
प्रथम समुल्लास मे ही फिर आगे लिखा है कि-
इसलिए सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर ही की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करें, उससे भिन्न की कभी न करें। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नामक पूर्वज महाशय विद्वान्, दैत्य दानवादि निकृष्ट मनुष्य और अन्य साधारण मनुष्यों ने भी परमेश्वर ही में विश्वास करके उसी की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करी, उससे भिन्न की नहीं की। वैसे हम सब को करना योग्य है। { सत्यार्थ प्रकाश- प्रथम समुल्लास }
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दयानंद जैसा धुर्त जो खुद की कही बात से पलट जाए पुरे विश्व में नहीं मिलेगा
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स ब्रह्मा स विष्णुः स रुद्रस्स शिवस्सोऽक्षरस्स परमः स्वराट्।...
स इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।।७।। -कैवल्य उपनिषत्।
भावर्थ : सब जगत् के बनाने से ‘ब्रह्मा’, सर्वत्र व्यापक होने से ‘विष्णु’, दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से ‘रुद्र’, मंगलमय और सब का कल्याणकर्त्ता होने से ‘शिव’,
जो सर्वत्र व्याप्त अविनाशी, स्वयं प्रकाशस्वरूप और प्रलय में सब का काल और काल का भी काल है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘कालाग्नि’ है।।७।।
प्रथम समुल्लास मे ही फिर आगे लिखा है कि-
इसलिए सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर ही की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करें, उससे भिन्न की कभी न करें। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नामक पूर्वज महाशय विद्वान्, दैत्य दानवादि निकृष्ट मनुष्य और अन्य साधारण मनुष्यों ने भी परमेश्वर ही में विश्वास करके उसी की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करी, उससे भिन्न की नहीं की। वैसे हम सब को करना योग्य है। { सत्यार्थ प्रकाश- प्रथम समुल्लास }
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दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
दयानंदभाष्य खंडनम्- भूमिका ( Dayanand Bhasya Khandanam Bhumika )
11:57 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
भूमिका :
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दयानंद ने अपनी मृत्यु से कुछ महीनों पहले सन् 1882 में इस ग्रन्थ के दूसरे संस्करण में स्वयं यह लिखा-
नियोग्
...
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दयानंद ने अपनी मृत्यु से कुछ महीनों पहले सन् 1882 में इस ग्रन्थ के दूसरे संस्करण में स्वयं यह लिखा-
नियोग्
...
जिस समय मैंने यह ग्रन्थ ‘सत्यार्थप्रकाश’ बनाया था, उस समय और उस से पूर्व संस्कृतभाषण करने, पठन-पाठन में संस्कृत ही बोलने और जन्मभूमि की भाषा गुजराती होने के कारण से मुझ को इस भाषा का विशेष परिज्ञान न था, इससे भाषा अशुद्ध बन गई थी। अब भाषा बोलने और लिखने का अभ्यास हो गया है। इसलिए इस ग्रन्थ को भाषा व्याकरणानुसार शुद्ध करके दूसरी वार छपवाया है। कहीं-कहीं शब्द, वाक्य रचना का भेद हुआ है सो करना उचित था, क्योंकि इसके भेद किए विना भाषा की परिपाटी सुधरनी कठिन थी, परन्तु अर्थ का भेद नहीं किया गया है, प्रत्युत विशेष तो लिखा गया है। हाँ, जो प्रथम छपने में कहीं-कहीं भूल रही थी, वह निकाल शोधकर ठीक-ठीक कर दी गई है।
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आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंद,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
सत्यार्थ प्रकाश के लेखक की उड़ रही हैं धज्जियाँ ( Dayanand Ki Ud Rahi He Dhajiya )
11:15 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
सत्यार्थ प्रकाश के लेखक की उड़ रही हैं धज्जियाँ यहाँ नकारते हुए प्रमाण विज्ञान की तरफ से।
चलिए आज जरा स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के अद्भुत ज्ञान-विज्ञान पर दृष्टिपात करते हैं।
सब चिकित्सा से सम्बन्धित इस विषय को इतना तो अवश्य जानते होंगे जितना मैं जिक्र करने जा रहा हूँ...
पुरुष वीर्य में २ प्रकार के क्रोमोजोम वा गुणसूत्र होते हैं जिन्हें आधुनिक भाषा में x और y कहते हैं।
स्त्री में १ ही प्रकार के होते हैं x।
जब पुरुष का x स्त्री के x से मिलता है तो जन्म लेती है कन्या और यदि पुरुष का y स्त्री के x से मिलता है तो बनता है लड़का।
चलिए आज जरा स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के अद्भुत ज्ञान-विज्ञान पर दृष्टिपात करते हैं।
सब चिकित्सा से सम्बन्धित इस विषय को इतना तो अवश्य जानते होंगे जितना मैं जिक्र करने जा रहा हूँ...
पुरुष वीर्य में २ प्रकार के क्रोमोजोम वा गुणसूत्र होते हैं जिन्हें आधुनिक भाषा में x और y कहते हैं।
स्त्री में १ ही प्रकार के होते हैं x।
जब पुरुष का x स्त्री के x से मिलता है तो जन्म लेती है कन्या और यदि पुरुष का y स्त्री के x से मिलता है तो बनता है लड़का।
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
सत्यार्थ प्रकाश के लेखक दयानंद चले डॉक्टर बनने ( Satyarth Prakash Ka Lekhak Bana Doctor )
11:02 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 5 Comments
सत्यार्थ प्रकाश के लेखक दयानंद चले डॉक्टर बनने ।
स्वामी जी कहने को तो ब्रह्मचारी थे पर थे बड़े रंगीले टाइप के औरतों से मजें लेने का एक मौका नहीं चूकते
कभी योनिसंकोचन के नाम पर बेचारी मासूम औरतों का चुतिया काटते तो कभी स्तन के छिद्र पर औषधि लेप
कैसे करें घंटा नही बताया
और बताते भी कैसे जब स्वयं ही नहीं जानते थे की क्या अंड संड बके जा रहा है
और गर्भाधान की तो बात ही क्या कहना उसे पढकर तो अंतर्रासवासन लिखने वाले भी डूब मरे ।
खेर ये सब बातें बाद की है पहले प्रश्न पर आते हैं
___________________________________
सत्यार्थ प्रकाश द्वितिय सम्मुलास :
प्रसूता स्त्री बच्चे को दूध न पिलावे। दूध रोकने के लिये स्तन के छिद्र पर उस ओषधी का लेप करे जिससे दूध स्रवित न हो। ऐसे करने से दूसरे महीने में पुनरपि युवती हो जाती है।
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स्वामी जी कहने को तो ब्रह्मचारी थे पर थे बड़े रंगीले टाइप के औरतों से मजें लेने का एक मौका नहीं चूकते
कभी योनिसंकोचन के नाम पर बेचारी मासूम औरतों का चुतिया काटते तो कभी स्तन के छिद्र पर औषधि लेप
कैसे करें घंटा नही बताया
और बताते भी कैसे जब स्वयं ही नहीं जानते थे की क्या अंड संड बके जा रहा है
और गर्भाधान की तो बात ही क्या कहना उसे पढकर तो अंतर्रासवासन लिखने वाले भी डूब मरे ।
खेर ये सब बातें बाद की है पहले प्रश्न पर आते हैं
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सत्यार्थ प्रकाश द्वितिय सम्मुलास :
प्रसूता स्त्री बच्चे को दूध न पिलावे। दूध रोकने के लिये स्तन के छिद्र पर उस ओषधी का लेप करे जिससे दूध स्रवित न हो। ऐसे करने से दूसरे महीने में पुनरपि युवती हो जाती है।
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आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब,
दयानंदभाष्य खंडनम्,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
एक मूर्ख को पूरी दुनिया मूर्ख ही दिखाई पड़ती है ( Maha Dhurt Dayanand )
10:28 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
✴✴ दयानंदभाष्य खंडनम् - ४ ✴✴
ये देखिए इस धूर्त को सत्यार्थ प्रकाश के अपने एकादश समुल्लास में ये बोलता है कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अब ज्ञान था या नहीं था मैं इस चक्कर में नहीं पडना चाहता।
परन्तु दुसरो का अपमान करने वाला , दुसरो को मुर्ख समझने वाला स्वयं कितना ज्ञानी है यह जानना जरूरी हो जाता है...
आइए देखते है स्वामी जी कितने समझदार मतलब ज्ञानी थे उन्हीं के शब्दों में पढ़िए
अ) सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में स्वामी जी कहते हैं कि
आसमान का जो ये नीला रंग है वो आसमान में उपस्थित पानी की वजह से है जो वर्षता है सो वो नीला दिखता है
ये देखिए इस धूर्त को सत्यार्थ प्रकाश के अपने एकादश समुल्लास में ये बोलता है कि नानक जी को ज्ञान नहीं था
अब ज्ञान था या नहीं था मैं इस चक्कर में नहीं पडना चाहता।
परन्तु दुसरो का अपमान करने वाला , दुसरो को मुर्ख समझने वाला स्वयं कितना ज्ञानी है यह जानना जरूरी हो जाता है...
आइए देखते है स्वामी जी कितने समझदार मतलब ज्ञानी थे उन्हीं के शब्दों में पढ़िए
अ) सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में स्वामी जी कहते हैं कि
आसमान का जो ये नीला रंग है वो आसमान में उपस्थित पानी की वजह से है जो वर्षता है सो वो नीला दिखता है
दयानंद,
दयानंदभाष्य खंडनम्
दयानंद सनातन धर्म का शत्रु ( Dayanand Sanatan Dharm Ka Shatru )
09:20 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
✴✴ दयानंदभाष्य खंडनम् -३ ✴✴
दयानंद ने वेदआदि भाष्यों के साथ छेडछाड क्यों किया
इन सबके पिछे स्वामी जी का उद्देश्य क्या था ??
आइए देखते है
इन सबके पिछे स्वामी जी का उद्देश्य क्या था ??
आइए देखते है
सत्यार्थ प्रकाश सप्तम संमुल्लास :- दयानन्द जी लिखते है ।
अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेद: सुर्यात्सामवेद: ।।
स्वामी जी इसका अर्थ लिखते है -
"ईश्वर ने सृष्टि की आदि मे अग्नि वायु आदित्य तथा अंगिरा ऋषियो की आत्माओ मे एक एक वेद का प्रकाशन किया"
आर्य समाज एवं नास्तिको को जवाब
आँख से अँधा दिमाग से पैदल आर्य समाज ( Ankh Se Andha Dimag Se Paidal Arya Samaj )
09:19 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
नियोग समाज द्वारा ब्राह्मणों पर एक आरोप अक्सर लगता आया हे वो ये की पुराणों की रचना ब्राह्मणों ने की थी और उसमे मिलावट भी कर दी थी इसलिए वो पुराणों को नहीं मानते.....
अरे मूर्ख अल्पज्ञ समाजीयो जरा इस पर भी तो सोच विचार करकें देखो कि ३ युगों तक लगभग करोड़ सालो तक श्री वेद भी तो उन्हीं ब्राह्मणों और पौराणिकों के पास ही रहे हैं तो क्या ब्राह्मणों ने वेदों में परिवर्तन नहीं कर दिए होंगे ?
उन्हें कैसे शुद्ध मान लेते हो ?........
अरे मूर्ख अल्पज्ञ समाजीयो जरा इस पर भी तो सोच विचार करकें देखो कि ३ युगों तक लगभग करोड़ सालो तक श्री वेद भी तो उन्हीं ब्राह्मणों और पौराणिकों के पास ही रहे हैं तो क्या ब्राह्मणों ने वेदों में परिवर्तन नहीं कर दिए होंगे ?
उन्हें कैसे शुद्ध मान लेते हो ?........
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : सत्रहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Seventeenth Chapter )
00:19 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments☞ वह विद्वान जिसने असंख्य किताबो का अध्ययन बिना सदगुरु के आशीर्वाद से कर लिया वह विद्वानों की सभा में एक सच्चे विद्वान के रूप में नहीं चमकता है. उसी प्रकार जिस प्रकार एक नाजायज औलाद को दुनिया में कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं होती.
☞ हमें दुसरो से जो मदद प्राप्त हुई है उसे हमें लौटना चाहिए. उसी प्रकार यदि किसीने हमसे यदि दुष्टता की है तो हमें भी उससे दुष्टता करनी चाहिए. ऐसा करने में कोई पाप नहीं है.
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : सोलहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Sixteenth Chapter )
00:11 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : पन्द्रहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Fifteenth Chapter )
00:00 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : चौदहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Fourteenth Chapter )
23:47 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : तेरहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Thirteenth Chapter )
23:27 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानन्द सर्वश्रेष्ठ विचार- भाग ४ ( Swami Vivekanand Ke Suvichar )
21:39 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments◙ जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस उपदेशवाणी (श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है। ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है।
~ स्वामी विवेकानन्द
◙ 'बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए' - यहि मेरा धर्म है। "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः- यही मेरा धर्म है।"
~ स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानन्द सर्वश्रेष्ठ विचार- भाग ३ ( Swami Vivekanand Ke Suvichar )
21:00 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments~ स्वामी विवेकानन्द
◙ बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही।
~ स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानन्द सर्वश्रेष्ठ विचार- भाग २ ( Swami Vivekanand Ke Suvichar )
20:37 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments◙ वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य - जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो - व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।
~ स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानन्द सर्वश्रेष्ठ विचार- भाग १ ( Swami Vivekanand Ke Suvichar )
20:21 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments◙ जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।
~ स्वामी विवेकानन्द
◙ तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
~ स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानंद
युगपुरुष स्वामी विवेकानंद का युवाओं को एक पत्र ( Swami Vivekand Ka patra Yuwao Ke Naam )
19:52 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Commentsयुगपुरुष विवेकानंद जी का एक पत्र जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म का जन-जन में संचार करने के लिये युवाओं का आह्वान किया है। स्वामीजी ने अपने अल्प जीवन में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और प्रगतिशील समाज की परिकल्पना की थी। स्वामी जी ये पत्र 19 नवम्बर 1894 को न्युयार्क से भारत के श्रीयुत, आलासिंगा, पेरुमल आदि भक्तों को लिखे थे। ये पत्र उनकी भावनाओं-मान्यतओं और जीवन दर्शन का स्पष्ट प्रमाण है।
मित्रों, उस पत्र का कुछ अंश आप सभी से शेयर कर रहे हैं।
हे वीर हद्रय युवकों,
यह बङे संतोष की बात है कि, अब तक हमारा कार्य बिना रोक टोक के उन्नती ही करता चला आ रहा है। इसमें हमें सफलता मिलेगी, और किसी बात की आवश्यता नही है, आवश्यकता है केवल प्रेम, अकपटता और धैर्य की। इहलोक और परलोक में यही बात सत्य है। यदि कोई कहे कि देह के विनाश के पिछे और कुछ नही रहा तो भी उसे ये मानना ही पङेगा कि स्वार्थपरता ही यर्थात मृत्यु है।
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद के जीवन के तीन प्रेरक प्रसंग ( Swami Vivekanand )
19:20 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Commentsप्रेरक प्रसंग : पुत्र के लिए प्रार्थना
प्रत्येक माता के मन में यह भाव स्वाभाविक होता है कि उसकी संतान कुल की कीर्ति को उज्जवल करे. प्रथम दो संताने
शिशुवय में ही मर गयी थीं, इसीलिए माता भुवनेश्वरी देवी प्रतिदिन शिवजी को प्रार्थना करती कि ‘हे शिव ! मुझे तुम्हारे जैसा पुत्र दो.’ काशी में निवास कर रहे एक परिचित व्यक्ति को कह कर उन्हों ने एक वर्ष तक वीरेश्वर शिवजी की पूजा भी करवाई थी.
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद-संक्षिप्त जीवनी ( Swami Vivekanand Jivan Parichay )
19:00 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 1 Comments
भारत की पावन माती में,
हुए अनेकों संत।
एक उन्ही में उज्जवल तारा,
हुए विवेकानंद ।।
हुए अनेकों संत।
एक उन्ही में उज्जवल तारा,
हुए विवेकानंद ।।
भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद का अन्यतम स्थान है भारतीय पुनर्जागरण के महान सेवक स्वामी विवेकानंद का जन 12 जनवरी सन 1863 में कल्केज में एक सम्मानित परिवार में हुआ था, इनकी माता आध्यात्मिकता में पूर्ण विशवास करती थी परन्तु इनके पिता स्वतंत्र विचार के गौरवपूर्ण व्यक्ति थे l इनका पहला नाम नरेन्द्रनाथ था, शारीरिक दृष्टि से नारेंद्नाथ हष्ट-पुष्ट व् शौर्यवान थे, उनका शारीरिक गठन और प्रभावशाली मुखाकृति प्रत्येक को अपनी और आकर्षित कर लेती थी, रामकृष्ण के शिष्य बनने से पूर्व वे कुश्ती, घुन्सेबाजी, घुड़सवारी और तैरने आदि में भी निपुणता प्राप्त कर चुके थे, उनकी वृद्धि विलक्षण थी, जो पाश्चात्य दर्शन में ढाली गयी थी , उन्होंने देकार्त, ह्य म, कांट, फाखते, स्प्नैजा, हेपिल, शौपेन्हावर, कोमट, डार्विन और मिल आदि पाश्चात्य दार्शनिको कि रचनाओं को गहनता से पढ़ा था, इस अध्ययनों के कारण उनका दृष्टिकोण आलोचनात्मक और विश्लेष्णात्मक हो गया था, प्रारंभ में वे ब्रह्मसमाज कि शिक्षाओं से प्रभावित हुए, परन्तु वैज्ञानिक अध्ययनों के कारण ईश्वर से उनका विश्वास नष्ट हो गया था, पर्याप्त काल तक वे नास्तिक बने रहे और कलकत्ता शहर में ऐसे गुरु कि खोज में घूमते रहे जो उन्हें ईश्वर के अस्तित्व का ज्ञान करा सके ।
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र चिंतन ( Swami Vivekanand )
10:46 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 3 Commentsस्वामी विवेकानंद एक ऐसे संत थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत था। उनके सारे चिंतन का केंद्रबिंदु राष्ट्र था। भारत राष्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए जितना चिंतन और कर्म इस तेजस्वी संन्यासी ने किया उतना पूर्ण समर्पित राजनीतिज्ञों ने भी संभवत: नहीं किया। अंतर यही है कि उन्होंने सीधे राजनीतिक धारा में भाग नहीं लिया। किंतु उनके कर्म और चिंतन की प्रेरणा से हजारों ऐसे कार्यकर्ता तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्र रथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
इस युवा संन्यासी ने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था, बल्कि करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया। राष्ट्र के दीन-हीन जनों की सेवा को ही वह ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे।
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : बारहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Twelfth Chapter )
23:59 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
☞ वह गृहस्थ भगवान् की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी जरूरते पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहा स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान् के भक्तो की संगती में आनंद आता है.
☞ जो एक संकट का सामना करने वाले ब्राह्मण को भक्ति भाव से अल्प दान देता है उसे बदले में विपुल लाभ होता है.
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : ग्यारहवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Eleventh Chapter )
23:46 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : दसवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Tenth Chapter )
23:37 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : नवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Ninth Chapter )
23:22 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
☞ तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो. इन सब को छोड़कर हे तात तितिक्षा, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य इसका अमृत पियो.
☞ वो कमीने लोग जो दूसरो की गुप्त खामियों को उजागर करते हुए फिरते है, उसी तरह नष्ट हो जाते है जिस तरह कोई साप चीटियों के टीलों में जा कर मर जाता है.
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : आठवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Eighth Chapter )
23:07 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
☞ नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली दौलत है.
☞ दीपक अँधेरे का भक्षण करता है इसीलिए काला धुआ बनाता है. इसी प्रकार हम जिस प्रकार का अन्न खाते है. माने सात्विक, राजसिक, तामसिक उसी प्रकार के विचार उत्पन्न करते है.
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : सातवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Seventh Chapter )
22:52 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
☞ एक बुद्धिमान व्यक्ति को निम्नलिखित बातें किसी को नहीं बतानी चाहिए ..
१. की उसकी दौलत खो चुकी है.
२. उसे क्रोध आ गया है.
३. उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया.
४. लोगो ने उसे जो गालिया दी.
५. वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है.
☞ जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है.१. की उसकी दौलत खो चुकी है.
२. उसे क्रोध आ गया है.
३. उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया.
४. लोगो ने उसे जो गालिया दी.
५. वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है.
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : छठवां अध्याय ( Chanakya Neeti : Sixth Chapter )
22:34 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : पांचवा अध्याय ( Chanakya Neeti : Fifth Chapter )
22:18 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
☞ ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए . दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए . पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए .
☞ सोने की परख उसे घिस कर, काट कर, गरम कर के और पीट कर की जाती है. उसी तरह व्यक्ति का परीक्षण वह कितना त्याग करता है, उसका आचरण कैसा है, उसमे गुण कौनसे है और उसका व्यवहार कैसा है इससे होता है.
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : चौथा अध्याय ( Chanakya Neeti : Fourth Chapter )
21:51 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
☞ निम्नलिखित बातें माता के गर्भ में ही निश्चित हो जाती है....
१. व्यक्ति कितने साल जियेगा २. वह किस प्रकार का काम करेगा ३. उसके पास कितनी संपत्ति होगी ४. उसकी मृत्यु कब होगी .
१. व्यक्ति कितने साल जियेगा २. वह किस प्रकार का काम करेगा ३. उसके पास कितनी संपत्ति होगी ४. उसकी मृत्यु कब होगी .
☞ पुत्र , मित्र, सगे सम्बन्धी साधुओं को देखकर दूर भागते है, लेकिन जो लोग साधुओं का अनुशरण करते है उनमे भक्ति जागृत होती है और उनके उस पुण्य से उनका सारा कुल धन्य हो जाता है .
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti
चाणक्य नीति : तीसरा अध्याय ( Chanakya Neeti : Third Chapter )
21:25 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 1 Comments
चाणक्य नीति : Chanakya Neeti