चुतियार्थ प्रकाश,
सत्यानाश प्रकाश,
सत्यार्थ प्रकाश का कच्चा चिठा
सत्यार्थप्रकाशान्तर्गत प्रथम समुल्लास की समीक्षा | Pratham Samullas Ki Samiksha
22:29 उपेन्द्र कुमार 'हिन्दू' 0 Comments
यस्माज्जातम जगत्सर्वं
यस्मिन्नेव प्रलीयते।
येनेदं धार्यते चैव तस्मै ज्ञानात्मने नमः॥
सत्यार्थप्रकाशान्तर्गतप्रथमसमुल्लासस्य खंडनंप्रारभ्यते
सत्यार्थ प्रकाश प्रथम समुल्लास
पृष्ठ, ९
❝ओ३म् शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्य्य मा।
शन्नऽइन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः॥
नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव
प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।
त्वामेव प्रत्यक्षं बह्म्र वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु
तद्वक्तारमवतु।
अवतु माम् अवतु वक्तारम्। ओ३म्
शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः॥१॥
अर्थ-(ओ३म्)
यह ओंकार शब्द परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है, क्योंकि इसमें जो अ, उ और म् तीन अक्षर
मिलकर एक (ओ३म्) समुदाय हुआ है, इस एक नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं जैसे-अकार
से विराट्, अग्नि और विश्वादि, उकार से हिरण्यगर्भ, वायु और तैजसादि, मकार से ईश्वर,
आदित्य और प्राज्ञादि नामों का वाचक और ग्राहक है, उसका ऐसा ही वेदादि सत्यशास्त्रें
में स्पष्ट व्याख्यान किया है कि प्रकरणानुकूल ये सब नाम परमेश्वर ही के हैं❞
समीक्षा— यह अर्थ स्वामी जी के घर का है
जो उन्होंने भर लौटा भंग पीने के बाद किया हैं स्वामी जी ने तो ठान रखा है कि इस पुस्तक के माध्यम से उन्हें केवल मिथ्या भाषण
ही करना है किसी को कुछ ठीक ठीक नहीं बताना, वर्ना उनका मत दूसरों से भिन्न कैसे मालूम
होगा, देखिये सही अर्थ यह है—